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Showing posts from 2016

तेज़ाब (ACID)

ये मेरे चेहरे पर जो जलने का निशान हैं दरअसल आईना है  तुम्हारी बुज़दिली की पहचान हैं तुम सोचते थे कि मैं जली पहचान लेकर कहीं छुप जाऊँगी ये चेहरा मेरी जीत है मैं सारी दुनिया को दिखलाऊँगी देखो मेरे इस चेहरे को क्यूं? नहीं कर पा रहे हो सहन कभी रोती हुई माँ दिखती है इसमें कभी थूकती हुई बहन? तो, तुम मुझे देखो... तुम मुझे देखो कि... तुम्हारी कमजोरी का इश्तहार हूं तुम मुझे देखो कि... मैं अभी तक तुम्हारी हार हूं तुम मुझे देखो कि... जब तुमने मुझसे इज़हार किया था तुम मुझे देखो कि... क्यूं मैंने तुम्हें इनकार किया था तुम मुझे देखो कि... तुम्हारी माँ तुम्हें पैदा करके पछता रही है तुम मुझे देखो कि... तुम्हें अपनी सबसे बड़ी भूल बता रही है तुम मुझे देखो कि... मैं तुम्हारी लम्बी उम्र की दुहाई दूं तुम मुझे देखो कि... तुम्हें तुम्हारी बेटी में मैं ही मैं दिखाई दूं तुम मुझे देखो कि... तुम्हारी बहन डर रही है तुम्हारी बुरी नज़र से तुम मुझे देखो कि... तुम गलने लगे हो अपने ही ज़हर से तुम मुझे देखो कि... मर्द वो है जो इनकार भी सर-आंखों पे लेगा तुम मुझे देखो कि... जिससे मुहब्बत की, उसस
उसने बेरुखी से कहा जब ‘तुम्हें जीना है अकेले’ एक वही तो भीड़ था, अब छूटे जहाँ के मेले उसके बिना है जीना दुश्मन की बद्-दुआ है उसके बिना है जीना मुझे मौत की सज़ा है उसके बिना है जीना कि किस्तों में जान जाए उसके बिना है जीना मछली डूब मरी हाय उसके बिना है जीना है आतिश का इक समंदर उसके बिना है जीना बंधे-हाथ तैरना अन्दर उसके बिना है जीना पाँव में ज्यूं आबले हैं उसके बिना है जीना और मीलों के फासले हैं उसके बिना है जीना कि बदन कफ़न है ये उसके बिना है जीना ख़ुद में ही दफ़न है ये उसने बेरुखी से कहा जब ‘इक खेल था जो हम खेले’ एक वही तो भीड़ था, अब छूटे जहाँ के मेले
वक़्त के चेहरे पर झुर्रियां पड़ जाएंगी बस यही यादें हैं जो बाक़ी रह जाएंगी
उसके नाम में पोशीदा इक नशा है पी लूँ? ये तो तौहीन ए मयक़दा है

राष्ट्र और प्रेम

तेरे घने गेशूओं को अपने चेहरे पर बिखेरे हुए अपनी उन हसीं पलों में जो अब बस तेरे हुए सोचता हूँ कि इस हसीं पल में भी... कोई ग़रीब झोपड़ा जल रहा होगा कोई अमीर जलसा चल रहा होगा कुछ सोने में ढले हाथ आग में घी फेंक रहे होंगे एक झोपड़े की चिता पर ‘महल’ सर्द हाथ सेंक रहे होंगे ------------------------------------------------------------------------------------ तेरे मखमली बदन को बाहों में भरते हुए होंठों से तेरे जिस्म पर शायरी करते हुए मैं सोचता हूँ... मखमली खेतों में दरारें पड़ गयी होंगी खड़ी फसलें खड़े-खड़े सड़ गयी होंगी भूख ने किसान को चोर बनाया होगा चोरों ने मिलकर चोर-चोर चिल्लाया होगा फिर उस नक्सली को जब गोली मारी जाएगी देश से मुफलिसी की तभी ये बीमारी जाएगी ---------------------------------------------------------------------------------- बेबस सा पड़ा मैं तुमपर तुम मुझपर पड़ी निढाल सांसों में लग गयी गाठें खाल से चिपक गयी खाल कमाल ये कि मैं फिर सोचता हूँ.. अंधी अँधेरी खानों में रोशनी ढूंढ रहे होंगे मज़दूर अपनी-अपनी ताबूतों में उतरने को हैं जो मजबूर इन्हीं खानों में एकदिन वो जिंदा दफ़न हो जाएंगे बनके ब
बिक रही है जो सरेबाजार किसी सामान की तरह तमन्ना थी कोई समझे उसे भी कभी इंसान की तरह मेरे ही माँ – बाप अब मेरे रिश्तेदार हो गए जाता हूँ अब अपने ही घर किसी मेहमान की तरह उसे याद करने से पहले करता हूँ *वुज़ू मैं और नाम लेता हूँ ऐसे, जैसे पाक *अज़ान की तरह इंसान है जब तक, उसका है इंसानों से *राब्ता बन जाएगा पत्थर, बनाया जो भगवान की तरह हालांकि कोई क़ीमत नहीं, पर वो बेशक़ीमती है ख़रीद नहीं पाया कोई उसे, उसके ईमान की तरह बारिश की दुआ मेरी, बन जाए न बददुआ कोई कुम्हार की तरह सोचूं कि सोचूं किसान की तरह इस तरह रहता हूँ इस शहर में ऐ फ़क़ीर! मुसलमां में हिन्दू, हिन्दुओं में मुसलमान की तरह *वुज़ू - Pious ritual *अज़ान - Prayer *राब्ता - Relation
मेरी अक़ीदत का  ये   मोजज़ा है  ज़बीं चूमे जो पत्थर वो ख़ुदा है

मदारी

अरे! हे मदारी! रे मदारी! रे मदारी! हो! तेरा पिटारा, है जग सारा, दुनियादारी हो तेरे इशारे का सम्मान करें ख़ुद हनुमान तुम मांगो भीख तेरे कब्ज़े में भगवान ईश का करतब इंसान और ईश इंसानी कलाकारी हो   हे मदारी! रे मदारी! रे मदारी! हो! आस्तीन सा एक पिटारा सांप हम जै सा तुम्हारा सर पटके बार बार विष उगलने को तैयार न ज़हर उगल आज मत बन रे समाज काटने- कटने की ये बीमारी हो हे मदारी! रे मदारी! रे मदारी! हो! तेरे जमूरे- आधे अधूरे भूखे - नंगे , हर हर गंगे हाथसफाई के उस्ताद पर लगे कुछ न हाथ जीने के लिए जान लगाएं ज़ख्म से ज़्यादा कुछ न पाएं हवा खाएं साएं – साएं बचपन के सर चढ़ गयी ज़िम्मेदारी हो हे मदारी! रे मदारी! रे मदारी! हो!
इस ज़मीन को खुद में बसाने लगा है . वो छोटा बच्चा मिटटी खाने लगा है . कुछ लोग घर को रेत कर गए थे , वो पागल रेत से घर बनाने लगा है . बुश - लादेन , इज़रायल - फलस्तीन हमसफ़र हैं , वो   अख़बारी काग़ज़  के जहाज़ उड़ाने लगा है . इक तरफ इंसान बंट रहे हैं ज़ात ओ मज़हब में , इक तरफ वो आटे में बेसन मिलाने लगा है . गिरो , उठो , धूल झाड़ो , फिर बढ़ो , वो हमें चलने का सलीका सिखाने लगा है . कहीं बचपन को लग जाए न तजर्बे की नज़र , यह फ़िक़्र ऐ फ़क़ीर मुझे सताने लगा है .
जो दो आँखों में दो-दो जहां की ख़्वाहिश लिए चलता है  वो बूंद है जो ख़ुद में समंदर की गुंजाइश लिए चलता है

मंटो तुम मर जाओ

मंटो तुम्हें बुरी लत है लिबास उतार देने की पर नंगी जिस्मों पर लिबास ही कब था  तुम उधेर रहे हो खाल परत दर परत समाज की फट रही हैं नसें लहू जिस्म बनता जा रहा है लहू ढँक लेगा बदन लहू बन जाएगा कफन लाश पड़ी है 'आज' की मंटो तुम मरे नहीं हो लफ्ज़ दर लफ्ज़ मार रहे हो क़ातिल हो तुम उस क़ातिल से ज़्यादा जिसके हाथ में खंज़र था तुम ज़िंदा करते हो मुझे हर कहानी में अपनी ज़ुबानी में अपने मुताबिक बिछाकर चूहेदान बना के शाहदोले का चूहा लेकर फितरत बाज की मंटो क्या ये कोई बात है कि तुम हर शख्स को कर दो टोबा टेक सिंह या फिर बारिश में भीगा ज़ख़्मी सर पे ज़ख्म उठाए टिटवाल के कुत्ते सा जिसकी जीभ पहुँच नहीं रही ज़ख्म तक जिसके ज़ख्म से आ रही है बू छटपटा रहा है मरने के लिए छोड़ दिया तुमने जिसे अधूरा ताउम्र ऐसे ही सड़ने के लिए या फिर सिर्फ एक अदद ठन्डे गोश्त के लिए तुम खोल दो महमूदा, राधा, मैडम डीकोस्टा की काली सलवार सौ कैंडल पावर के बल्ब की कुलबुलाती रौशनी में... समाज उस जिस्मफरोश के आईने में… जिसकी जिस्म की तमन्ना थी उसे जिसकी खाल उधेर देना चाहता था वो ज
मान लेने में और यक़ीन में फ़र्क़ है  दलदल में और ज़मीन में फ़र्क़ है  क़िताबें चाटते हैं क़िताबी कीड़े भी  पढ़े-लिखे और ज़हीन में फ़र्क़ है
जिन दो परायी आँखों में मेरा सपना पलता है मेरी उम्मीद के सांचे में, उसका अरमान ढलता है रूह बदन का नाता है, खुशबू गुल का रिश्ता है जिसे पाने की चाहत है, वो मुझे खोने से डरता है वो मेरा आईना है, मैं लिपटी उससे परछाई हूँ देखे अक्स ख़ुद का वो, मुझे पागल-पागल कहता है वो ग़ुम-शुदा है मुझमें और मैं ला-पता हूँ उसमें उसमें ख़ुद को पाता हूँ, वो ख़ुद से मुझमें मिलता है रुक - रुक कर कहता है, कहते - कहते रुकता है मुझसे कहने वाली बातें, ख़ुद से ही कहता रहता है जो घाटा है वो मुनाफ़ा है, मुनाफ़े में बस घाटा है इश्क़ में फ़क़ीर चौथी फेल, बस तारे गिनता रहता है
जो था कभी पोशीदा वो पोशीदा फिर नहीं रहा जो था ज़ाहिर वो फिर कभी ज़ाहिर नहीं रहा ये मंज़िलें ही हैं सफर की सबसे बड़ी अड़चन मिली जो मंज़िल तो मुसाफिर मुसाफिर नहीं रहा उसे ख़ुदा की अज़मत पर यक़ीन नहीं था कभी तुझसे मिला है जब से वो, तो काफ़िर नहीं रहा इश्क़ है , इश्क़ पाने में खुद को खो देना जनाज़े में उठी अमृता , खबर उडी साहिर नहीं रहा अब तो जब जी चाहे छू लूं उसे, आँखें मूंदकर छुपने - छुपाने के खेल में अब वो माहिर नहीं रहा तेरी बात मान लेता तो बात खत्म ही हो जाती ग़ुफ़्तगू की चाहत में तुझसे कभी मुत्तासिर नहीं रहा आ पैरों में वक़्त बांध के , मौत से ज़रा पहले फिर न कहना , फ़क़ीर अब मेरा मुन्तज़िर नहीं रहा
कोई कसर नहीं छोड़ेगी , अपना निवाला बनाने में जाने क्या मज़ा आएगा , मिट्टी को मिट्टी खाने में बारहा लहरें तोडती हैं , बारहा वो बनाता है घरोंदा मुझे भी बच्चों सा हौसला दे, घोंसला सजाने में तितलियों पर है असर उसके काले जादू का डूब कर मर जाना चाहतीं हैं , लबों के पैमाने में एक ख्वाब को देखा रहा हूँ मैं करवटें लेते हुए ख्वाब मेरा टूट ही न जाए, कहीं उसे जगाने में उसे लगता है मुश्किल है, तो मुमकिन भी होगा पागल कब से लगा है, पानी पर तस्वीर बनाने में नज़रों से किया वादा , जुबां से मुकर गए फ़क़ीर यही तो फ़रक है नज़रिये में , और नज़र आने में
सियाचिन में जान गंवाने वाले सैनिकों के नाम: मॉ के नाम पर कबतक बच्चों को खाएंगी सरहदें ख़ून के कतरों से कबतक प्यास बुझाएंगी सरहदें
सवाल ऐसा कि जो लाजवाब कर दे जवाब भी कुछ यूं कि बेताब कर दे ज़िन्दगी ने मुझे खाली हाथ लौटाया है ऐ मौत! आ तू भी मेरा हिसाब कर दे ये कहानी तो आईने सी लगती है मेरे ही रु ब रु मुझे न ये किताब कर दे मेरी ज़िद है कि न पिएंगे, दर्द सहेंगे ख़ुदा! अब तू ही पानी को शराब कर दे हम ही सदा सजदे में झुकाते हैं सर ख़ुदा बंदा न हो जाए जो आदाब कर दे एक बार मरूं , कि मर - मर के मरूं मौत या ज़िन्दगी, तूही इन्तख़ाब कर दे ख़्वाब ज़रा सोच समझकर देख फ़क़ीर जाने कौन सा तेरी नींद खराब कर दे

टूटना

टूटूं तो टूटूं, सितारों की तरह टूटने में टूटने का हुनर हो या बिखर जाऊं टूटके आईने सा तू ही तू हर टुकड़े के अंदर हो टूटूं तेरी आँखों से जैसे शबनम एक बूंद में सारा समंदर हो तेरे हाथों से छूट जाऊं कभी यूँही तुझसे ही टूटना मेरा मुक़्क़दर हो मैं जो टूटूं, तू तड़पे मछलियों सी इक तड़पती आह तेरे लब पर हो ऐसे टूटूं जैसे शजर से कोई शाख ताउम्र तुझे अफ़सोस मुझे खोकर हो दिल का टूटना भी क्या कोई टूटना है फ़क़ीर?
कहीं नहीं था तू फिर भी था हरसू ताशब तुझमें ग़ुम था मैं मुझमें ग़ुम था तू ताशब कल रात कंटीले बाड़ों में फँस गया था चाँद ज़ख्म से बूँद बूँद टपकता रहा जुगनू ता-शब नूर टूट के बहा हर सिम्त इत्र के लहजे में जुगनू दर-ब-दर फैलाता रहा खुशबू ता-शब दाग़ उसके चेहरे पर बहुत फबते हैं बेख़बर चाँद सोया रहा मेरे रू-ब- रु ताशब सबा उड़ा ले गयी उसका नक़ाब सोते हुए दिन ही दिन बिखरा रहा कू-ब-कू ताशब अब उसे दिल में छुपाना मुमकिन नहीं फ़क़ीर आईना देखा गोया उसे देखा हू-ब- हू ताशब