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Showing posts from 2014

तुम्हें याद हो कि न याद हो

वो जो एक दरख्त था जिसकी मीठी छांव ओढ़कर एक तन्हा तीखी दोपहर साथ साथ देखते रहे डाल-डाल चढ़ते हुए ख्वाबों को पाते बुलंदियां सर झुकाए आज भी याद करता है तुम्हें… तुम्हें याद हो कि न याद हो. -------------------------------------------------------------------------- वो जो एक झील थी जिसके ठहरे शीशे में कभी हम देखते थे आईना पानी के ऊपर थी बनी तस्वीर इक तिरी-मिरी रात थाली सी सजी परोसती थी जो पूनम का चाँद कल-कल जो जुबां में याद करती है तुम्हें… तुम्हें याद हो कि न याद हो. -------------------------------------------------------------------------- हवेली की वो बूढ़ी सी छत तन्हा सी अकेली सी छत छुपा लेती थी हमें हिफाज़त के आग़ोश में सीढ़ियां बताती थी जिसकी आ रहा है इधर कोई वो सीढ़ियां कब से खामोश हैं बस याद करके इक तुम्हें तुम्हें याद हो कि न याद हो -FAQEER
चाँद कितना बेचारा लगता है एक बुझा हुआ तारा लगता है आसमान के आईने में अजी अक्स हमारा लगता है बे-पतवार उतरा हूँ दरिया में देखो कहाँ किनारा लगता है कफ़न ओढ़े सोया है जो ज़िन्दगी का मारा लगता है उसकी रुख से धोखा खा गए आतिश भी प्यारा लगता है उसको वजूद कहता था अपना वो ख़ुद से हारा लगता है कितनों की मन्नतें हो गयी पूरी वो   टूटा ऐसा, तारा लगता है

मुझसे तेरी खुशबू आती है......

तुम्हारा ज़िक्र लबों पर दबा लेता हूँ तुम्हारा रुख पलकों में छुपा लेता हूँ साँसों में सरगोशी भी है चुप चुप सी, धीमी धीमी धड़कने भी चलती हैं अब दबे क़दमों से, थमी थमी बचा रहा हूँ तुम्हें छिपा रहा हूँ तुम्हें दुनिया से, रुसवाई से कभी कभी अपनी ही परछाई से लेकिन ख़्वाब में तुझसे बातें करने की आदत अक्सर मुझे डराती है अब दिल में छुपाना मुमकिन नहीं मुझसे तेरी खुशबू आती है. मुझसे तेरी खुशबू आती है.
पीछे-पीछे सचमुच ही चाँद हमारे साथ चले? एक ही जगह पर या, हम ही सारी रात चले? ज़ख़्मी है गुफ्तगू भी, तराशे-पैने लफ़्ज़ों से ख़ामोशी  के लहजे में अब कोई बात चले बड़े लोगों की दुनिया भी, अलग ही कोई दुनिया है जनाज़े भी निकले यूं, जैसे कोई बारात चले परछाईं सी है बदहाली, घटती-बढ़ती रहती है मेरे क़दमों से उलझे, ये मेरे हालात चले ढूंढ रहे हैं पत्थर में, जो ख़ुदा  की गुंजाईश कितने सुरीले लय में, बुतकारों के हाथ चले ----FAQEER

दो चराग़ थे

दो चराग़ थे ज़िन्दगी-सी अँधेरी रात में दो चराग़ थे शब-दर-शब जलते रहते मचलते रहते बूँद-दर-बूँद पिघलते रहते सर पर लौ सवार थी और बदन था अपने ही काले साये के घेरे में ख़ुद से ही टकरा जाते दोनों उस घुप्प सियाह अँधेरे में जब भी अँधेरा खंगालते ख़ुद  को ही खोते ख़ुद को ही पाते अंधे हाथों के हाथ लगती थी सिर्फ़ तन्हाई रूह तलक फैली जिस्म से भी लम्बी अपनी ही परछाई फिर किसी दिन किसी ने रख दिया उन्हें एक-दूसरे की ज़द में पल भर में ही जिस्म रोशन हो गए दोनों चराग एक-दूसरे के दरपन  हो गए पहला चराग़ दूसरे को अपने रोशन बाहों  में भरने लगा कान के क़रीब जाकर मोम से मुलायम लहजे में कहने लगा "अब देखो चराग़ तले  अँधेरा नहीं है सब तुमसे है  मुझमें कुछ मेरा नहीं है"
जिस शजर की हवाओं से पाती हैं ज़िन्दगी पतंगें  उसी से  लटक के करेंगी एकदिन ख़ुदकुशी पतगें  - फ़क़ीर                                      *शजर - tree 

तुम्हें याद हो कि न याद हो

वो जो एक दरख्त था                      जिसकी मीठी छांव ओढ़कर एक तन्हा तीखी दोपहर साथ देखते रहे डाल - डाल चढ़ते हुए ख़्वाबों को पाते बुलंदियां सर झुकाये आज भी याद करता है तुम्हें तुम्हें याद हो कि न याद हो ----------- 1. वो जो एक झील थी जिसके ठहरे शीशे में कभी हम देखते थे आईना पानी के ऊपर थी बनी तस्वीर इक तिरी-मिरी रात को थाली सी सजी जो परोसती थी पूनम का चाँद कल-कल की ज़ुबान में पुकारती रहती है तुम्हें तुम्हें याद हो कि न याद हो ----------- 2. हवेली की वो बूढी सी छत बेवा सी अकेली सी छत छुपा लेती थी हमें हिफ़ाज़त की आगोश में सीढ़ियां बताती थी जिसकी आ रहा है इधर कोई वो सीढ़ियां कब से ख़ामोश हैं काश फिर देख पाती तुम्हें तुम्हें याद हो कि न याद हो ----------- 3. * दरख्त – TREE  **(मोमिन सा'ब का एक मिसरा उड़ाया है)

बयां -ए- जानां

वो जब बोलता है तो बोलता है कुछ ऐसे अंदाज़ में… जैसे शबनम के ढलकने का हो सलीका हर लफ्ज़ लम्स हो पहली कली का जैसे कपास की रूई उड़ी हो लफ्ज़-लफ्ज़ बुलबुले की लड़ी हो ------ 1 वो जब बोलता है तो बोलता है कुछ ऐसे अंदाज़ में… जैसे अगर अल्फ़ाज़ टपक जाएं तो उन पर मक्खियां भिनभिनाएं चाय में अगर शक्कर कम हो तो उसमें बस उसके लफ्ज़ ही मिलाएं डायबिटीज के मरीज़ ज़रा फासला से ही उससे राब्ता बढ़ाएं ------- 2 वो जब बोलता है तो बोलता है कुछ ऐसे अंदाज़ में… हर बार हौले से मानो कुछ यूं कहता है बात- बात पे जैसे I LOVE YOU कहता है ज़ख्मों की मरहम से रफू करता है चला भी जाए तो देर तक मुझसे गुफ्तगू करता है वो जब बोलता है तो बोलता है कुछ ऐसे अंदाज़ में… 3 Meaning: शबनम – Dew  ढलकने – Drip  सलीका – Style  लम्स – Touch अल्फ़ाज़ – Words राब्ता – contact रफू – Patch 
चलो न ख़ाक़ छानें  छुपी चिंगारियां चुनें  सबको मिलाकर एक चराग़ बनाएंगे रात की छाती पर रख आयेंगे चराग़, जो सूरज का परचम लहराये चराग़, जो हवाओं में भी हरदम लहराये चराग़, जिसमें तूफ़ानो की दहशत न हो चराग़, जले, मगर जलाने की हसरत न हो चराग़, जो हरदम रास्ता दिखलाये चराग़, जो रौशनी की ख़ुशबू फैलाये चराग़, जो खोये हुए का सहारा बन जाए चराग़, सभी सिंदबादों का ध्रुव-तारा बन जाए चलो न दिल की बात मानें चलो न ख़ाक़ छानें...