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Showing posts from October, 2015
एक बोतल सरसो का तेल…  या एक बोतल बच्ची के लिए दूध… या एक बोतल सुहाग का आल्ता… या एक बोतल माँ की दवा… या एक बोतल खुदगर्ज़ी की दारू… या इस बार… एक बोतल पेट के चूहे मारने वाला ज़हर… के बदले… एक बोतल खून बेच आएगी… वो लाश.
आज तो बेशक तुझे ख़ुदा बनाएंगे सलीब पे कल तुझे ही टांग आएंगे जिस पत्थर को सब मार रहे हैं ठोकर तराश ले खुदको तो सब सर झुकाएंगे आज चाहते हैं तू फूंक दे दुश्मन का घर देखना कल तुझे ही फूंक के बुझाएंगे गौ माता ये जो तुम्हारे रक्षक है सही दाम मिले तो तुम्हें बेच आएंगे इंसान ही नहीं ख़ुदा का भी नसीब है मिट्टी बुत बारिश में घुल के बह जाएंगे हाक़िम का हुक़्म है 'ऐ भूखे किसानों! तुम्हारी पेट की आग पर रोटी पकाएंगे' सियासत की तमन्ना खड़ी करना दीवारें फ़क़ीर हमारी भी ज़िद है हम इसपे छत बनाएं
यूं बच बचा के मैं तेरा रूप देखूं आईने में जैसे खुली धूप देखूं पत्थरों में देवता देखती है दुनिया पत्थरों में मैं मेरा महबूब देखूं सज़ा है *हिज़्र से पहले क़सम ख़ुदा ख़ाब तेरे शब ओ सहर ख़ूब देखूं वो सुबह का फूल मैं रात का जुगनू ‘फ़क़ीर’ इश्क़ का वजूद इसके बावजूद देखूं