Skip to main content

Posts

Showing posts from October, 2012
तुम रूठ जाओ, तुम्हें मनाने का लुत्फ़ आता है. कि तुम्हें यूं ही खो के पाने का लुत्फ़ आता है. बगैर 'जाँ'" के भी जीते हैं कुछ दिन, हथेली पे दही जमाने का लुत्फ़ आता है. खुद से करें वादा, देखेंगे नहीं तुमको देखके तुमको वादा भूल जाने का लुत्फ़ आता है. वफ़ा के CONTRACT का कर लें RENEWAL बेवफा होकर भी वफ़ा निभाने का लुत्फ़ आता है. हर लम्हा खुद से बोलें, तुम्हें याद नहीं करते अजी दिल को बहलाने का लुत्फ़ आता है. जलती रही शम्मा, कि परवाने को है जलाना कि जल - जलकर जलाने का लुत्फ़ आता है. यूंही इकदिन ख़ुदको, फिर कर देंगे तेरे हवाले ठोकरें खाकर घर लौट आने का लुत्फ़ आता है.