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Showing posts from December, 2015

मैंने क़ब्र पर मकान बनाया है

चारदीवारी ने मिलकर छत को कांधा लगाया है मैंने क़ब्र पर मकान बनाया है अपनी हर ख़्वाहिश को बुनियाद तले दफनाया है मैंने क़ब्र पर मकान बनाया है मेरे बाहर अंदर की दीवार बनेंगी दीवारें मेरे बदतर बेहतर की दीवार बनेंगी दीवारें मेरे घर और दफ्तर की दीवार बनेंगी दीवारें मेरे सत्रह - सत्तर की दीवार बनेंगी दीवारें बेबस ईमान को मैंने दीवारों में चुनवाया है मैंने क़ब्र पर मकान बनाया है आड़े तिरछे तरक़ीबों से सीधी खड़ी हैं दीवारें किसी की कमज़ोरी की ईंटों से मज़बूत खड़ी हैं दीवारें मेरे मन के बौनेपन से ऊंची खड़ी हैं दीवारें कंट्रीब्यूशन है हर मज़लूम का सिर्फ अपना नाम लिखवाया है मैंने क़ब्र पर मकान बनाया है