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Showing posts from November, 2015
कभी मस्जिद, कभी चर्च, कभी शिवाले में  मकड़ी फंसती जा रही है अपने ही जाले में

तुम आ जाती हो

तुम आ जाती हो तो हर *सूरत में दुनिया *In each & every situation खूब सूरत ही दिखती है ये *मुद्रा – स्फीति… *Inflation लगती है तेरे दुपट्टे के ढलकने सी सेंसेक्स का गिरना उछलना तेरी पलकों का झुकना, झुक के उठना छुप के देखना फिर अनजान बन जाना जैसे पाकिस्तान का दाऊद को छुपाना ज़िन्दगी की हर उलझन तुम्हारी ज़ुल्फ़ें सुलझाते सुलझाते सुलझने सी लगती है तुम आ जाती हो तो हर सूरत में दुनिया खूब सूरत ही दिखती है दाल की महंगाई से बेफिकर सोचता हूँ तन्हाई में बेसबर प्यार की पींगें कैसे बढ़ाएं अपनी दाल कैसे गलाएं वो जो कॉरिडोर में तुम्हारा रूमाल पाया था तुम्हारी *मिल्कियत *Possession तुम्हीं से छुपाया था साहित्य अकादमी के अवार्ड सा लौटा दूँ क्या पर पहले रूमाल की *तह में *Layer अपना दिल छुपा दूँ क्या लव जिहाद टू जिहाद लव इनके बारे में सोचने की फुरसत है कब बस तुम्हारी यादों में मसरूफियत दिल को मंज़ूर है *निष्क्रिय पड़ा है UN सा *Inactive हर मामले से दूर है गैर के साथ देख तुम्हें दिल की हसरत सांप्रदायिकता सी सुलगती है तुम आ जाती हो तो हर सूरत में दुनिया खूब सू