Skip to main content

Posts

Showing posts from 2010
उसकी उससे तआर्रुफ़ कराये कोई. उसके रुख़ से भी पर्दा हटाये कोई. दरार पड़ सकती है उसमें भी, आईने को भी आईना दिखाए कोई. बहुत गुरुर है दरिया को अपनी लहरों पे, मौज-ए- समंदर से भी उसे मिलवाए कोई. आँखें तरेरता है पर्वत तो डरता हूँ, ज़र्रा कहीं आँखों में पड़ न जाये कोई. हवा जो चराग़ से उलझकर हंसती है, लौ से जलकर लू न रह जाये कोई. डूब गया सारा जहाँ जिस सैलाब में, उसके सीने पे बनके तिनका लहराए कोई. जो फूंकते हैं इस गफ़लत में कि मैं चराग़ हूँ फ़कीर, समझाओ उन्हें चिंगारी हूँ, मुझे यूँ न आज़माये कोई.
कोई मुझे पढ़े ऐसे भी कि शायरी हो जाऊं. किसी के हसीं ख्यालों की डायरी हो जाऊं. प्यासा रहूँ मैं कबतक किसी के इंतज़ार में, मैं भी किसी के लिए तिश्नगी हो जाऊं. मुद्दतों से मैं बस सांस हूँ, धड़कन हूँ, कोई देखे मुझे ऐसे कि मैं ज़िन्दगी हो जाऊं. कोई तक़रार मुझसे भी करे इश्क़ में, कभी उसके लिए मैं ग़लत, कभी सही हो जाऊं. ख़्वाबों में आना चाहता हूँ मैं भी किसी के, ख़्वाब जो टूटे तो उसकी बेबसी हो जाऊं. किसी के जज़्बात में शुमार होऊं मैं भी, कभी ग़म, कभी ख़ुशी, कभी दिल्लगी हो जाऊं. उससे पहचानूँ मैं भी ख़ुद को, और ख़ुद से मैं अजनबी हो जाऊं. जाने लगूँ तो रोके मुझे ख़ामोशी से, ख़ामोशी से मैं किसी आँख की नमी हो जाऊं. दोस्तों आप सभी की हौसला अफज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया.................
मेरी सूरत से वो इस क़दर डरता है. कि न आइना देखता है, न संवरता है. गवाह हैं उसके पलकों पे मेरे आंसू, वो अब भी याद मुझे करता है. दूर जाकर भी भाग नहीं सकता मुझसे, अक्सर अपने दिल में मुझे ढूँढा करता है. ख़ामोश कब रहा है वो मुझसे, तन्हाई में मुझसे ही बातें करता है. मेरी मौजूदगी का एहसास उसे पल पल है, बाहों में ख़ुद को यूँही नहीं भरता है. मेरे लम्स में लिपटे अपने हाथों में, चाँद सी सूरत को थामा करता है. जी लेगा वो मेरे बिन फ़कीर, सोचकर, कितनी बार वो मरता है.

क्या आसमां है ये, ये कैसी ज़मीं है.

क्या आसमां है ये, ये कैसी ज़मीं है. हर मरासिम चोटिल है, हर रिश्ता ज़ख़्मी है. कितना बड़ा है तुम्हारा मुट्ठी भर का शहर, दीवार दीवार से लगी है मगर पडोसी अजनबी है. उस गाँव में फासला है घरों के दरमयां, दिल सा एक ही आँगन लेकिन हर कहीं है. वैसे तो भीड़ लगी रहती है ज़रूरतमंदों की, ज़रुरत पड़े तो तन्हाई है, कोई नहीं है तमाम खला, दुनिया तमाम एक ही बैग में, छोटे कांधों पर इतना बोझ सही नहीं है. हिंद - पाक, बुश - लादेन, इस्रायल - फलस्तीन साथ उड़ेंगे, काग़ज़ी जहाज़ बनाने वालों को कितना यक़ीन है.