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जिस बूढ़े को घर के बाहर सुलाया जा रहा है उसके पेंशन से ही घर का किराया जा रहा है हर आतंकवादी मुसलमान ही क्यों होता है ड रे हुये को डरे हुये से डराया जा रहा है तुझे फिर बेघर करने की चल रही है साज़िश राम तेरे मस्जिद को मंदिर बताया जा रहा है किसी की गोली नहीं , उसे तो भूखमरी मारेगी क्यों एक भूखे को सिपाही बनाया जा रहा है इस क़दर तन्हा हूँ , कि तन्हाई भी साथ नहीं धू प के साथ ही मुझसे दूर साया जा रहा है मेरे दुश्मनों ने उसे खड़ा कर दिया मेरे ख़िलाफ़ कि मेरे ख़िलाफ़ मुझे ही आज़माया जा रहा है
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एक बीज लगा रहा हूँ, मैं एक शजर के लिये है ये इंतजाम बहुत, आख़िरी सफ़र के लिये दीवारें दीवारों से जुड़ी हैं, घर घर से नहीं जुड़े इस तरह अजनबी है शहर, शहर भर के लिये देखा न करो यूं आईना, मेरी जां मेरी नज़र से अपनी ही नज़र है बहुत, बुरी नज़र के लिये दिल लगा रहा हूँ, कि भूलना है दिल का टूटना है बहुत ही लाज़िमी ये ज़हर, ज़हर के लिये है उसे भी एक आस, पानी को भी लगती है प्यास तट पे नदी आयी, जाने किस लहर के लिये हक़ीम की दवा है, या हक़ीम ही दवा है फ़क़ीर दुआ ना करो, दवा में असर के लिये
भगवान को ख़ुश करना चाहती है दुनिया दुनिया को ख़ुश करना चाहता है मेरा देश देश को ख़ुश करना चाहता है मेरा समाज मेरे समाज को ख़ुश करना चाहते हैं मेरे पापा मेरे पापा को ख़ुश करना चाहता हूँ मैं मुझे ख़ुश करना चाहती है मेरी बीवी मेरी बीवी को ख़ुश करना चाहती है नौकरानी लेकिन नौकरानी नाराज़ है मेरी बीवी से बीवी नाराज़ है मुझसे मैं नाराज़ हूँ पापा से पापा नाराज़ हैं समाज से समाज नाराज़ है देश से देश नाराज़ है दुनिया से दुनिया नाराज़ है भगवान से दरअसल , दुनिया को ख़ुश करने में दुनिया से ख़फ़ा है दुनिया
ज़माने के साथ नहीं अकेले आने का बस यही एक तरीक़ा है मुझे हराने का लहरें मुख़ालिफ़ हों , मुक़ाबिल बन बेशक़ पर आँख में आंसू हो तो डूब जाने का ज़िंदगी उसकी अपनी , इम्तिहां बन गयी बहुत शौक़ था उसको मुझे आज़माने का ज़हीन करे तर्क तो , तर्क कर उनसे पर ज़ाहिल से शुरू में ही , हार जाने का सीने पे जो रखा खंज़र , तो डर गया मैं सीना उसका , दिल मेरा , ख़ौफ़ दीवाने का ताउम्र सड़क पे सोया , मरने पे मिली चारपाई क्या ही सबब पूछूं , सुब्ह चराग़ जलाने का जो वो देखे दर्पण , दर्पण तस्वीर समझे ख़ुदको आईने को भी कभी , आईना दिखाने का कभी सुनी नहीं उसकी , मगर जो कहा उसने चले जाओ , मन बना लिया चले जाने का बस कि अब फ़क़ीर , ओढ़ लो क़ब्र अपनी ख़ाब ही रहा , ख़ाब के ख़ाब में आने का
आंसू पे गुस्से की परत चढ़ाता हूँ मैं अक्सर आग से पानी बुझाता हूँ जिक्र तेरा भी है मेंरी कहानी में, सो कहानी को बस कहानी बताता हूँ क़दमों के आगे सर न झुका पाऊंगा ले तेग़ के आगे गर्दन झुकाता हूँ तेरी जीत में जीत है मेरी इसलिये जीतते जीतते मैं हार जाता हूँ गोली चलाता हूँ मैं सय्याद से पहले बेख़बर सभी परिंदों को जगाता हूँ ख़ाली कश्ती भी लग गयी किनारे मुझे गुरूर था कश्ती मैं चलाता हूँ दोस्ती तोड़ ली है उसने जबसे फ़क़ीर उसको बस एक अच्छा दोस्त बताता हूँ
नज़रों के नहीं जुड़ते हैं तागे देखो देखो, अबकि मुझे जिस्म से आगे देखो एक सपना आकर लेट गया बगल में कहता है अब मुझे जागे जागे देखो मैं मर न गया तो फिर तुम बोलना ज़रा एकबार अपनी क़सम खाके देखो प्यादा हूँ तो यूं क़ुर्बान न करो मुझको वज़ीर बन जाऊंगा आज़मा के देखो बंधे हाथ तैराने के बाद, हाकिम ने कहा इस परकटे को पहाड़ से उड़ाके देखो अमावस की रात जो वो आये छत पे फिर तुम चाँद को चाँद के बहाने देखो दिल्ली दिलरुबा सी होने लगी है, यानी बिछड़ने वाले हैं दो दीवाने देखो वो जो उनसे न मिल सके, खुश हैं फ़क़ीर वो जो ख़ुश हैं, कितने हैं अभागे देखो
कब कहा मैंने मुझमें ऐब नहीं है पर आपके जैसा फरेब नहीं है बदन पर कुर्ता है आपके जैसा कुर्ते में मगर मेरे जेब नहीं है