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Showing posts from 2017
बदन प र  सीलन पड़ी, रूह नम पड़ गयी  हमारी हिफाज़त को छत,  कम पड़ गयी
ये जो बे-ईमानी की बीमारी है खुद से की गयी ईमानदारी है वफ़ादार रहूँ मैं तेरे साथ मेरे साथ तेरी भी ज़िम्मेदारी है तुमने पहनी है जो वफ़ा की कमीज़ खैराती है ये , मैंने ही उतारी है जो तुम नहीं समझते हो मेरी बात ये नासमझी ग़ज़ब होशियारी है चिंगारी भड़काए , चराग़ बुझा दे हवाओं में भी अब तरफदारी है महंगे लिबाज़ में नंगे हो ‘ साहब ’ कहते थे ग़रीबी नहीं , ख़ुद्दारी है
सब *पसमंज़र सामने आने लगे सारे रास्ते ख़ुद को दोहराने लगे बहाव को बना रखी है मंज़िल किनारे जबसे नईया डुबाने लगे नाम उन्होंने बताया अपना ' शमा ' फूंककर फिर चराग़ बुझाने लगे कबतक लड़ता अकेले काली रात से जुगनू मिलके सूरज उगाने लगे समझ लीजिये ख़्वाब में चल रहे होंगे सोते हुए पसीना जो आने लगे उन्होंने जो की चाँद की ख़्वाहिश फ़क़ीर आइना उनके रुख घुमाने लगे
निकल आये जो थे ज़ाहिल , ज़हीनों की ज़मात में सांप - बिच्छू जैसे निकलते हैं , पहली बरसात में सारे ग़वाहों ने मिलकर , चुना है मुंसिफ उसे ख़ुद ही था कभी गुनहगार , जो इस वारदात में .

बच्चा

मेरे ख़्वाब के क़द का एक छोटा सा बच्चा था सोता-जगता था मेरे संग मेरी आँखों में ही बसता था ग़ुमी राहों का मुसाफ़िर था रस्तों को राह दिखाता था अक्सर नक़्शे पे क़लम से अपनी दुनिया बनाता था क़लम को बनाके तलवार हर सरहद मिटाता था सोशल इंजीनियर था वो हदें मिटाना उसे आता था कभी नक़्शे फाड़ पहाड़ी से पुर्ज़ा - पुर्ज़ा उड़ाता था गरीबों में वो रोबिन हुड दुनिया बाँट के आता था ग्लोब गोल नहीं , बस बॉल था पैरों में दुनिया रखता था एटलस के पन्ने फाड़कर नाव बनाया करता था पर नाव , छीन न ले कोई खौफ में भी रहता था सबसे बचाके , सबसे छुपाके दिलवाली जेब में रखता था बेख़ौफ़ भले न हो , बेफ़िक़्र था वो कब किसकी परवाह करता था जिस दुनिया में रहता था वो उस दुनिया को जेब में रखता था मेरे ख़्वाब के क़द का एक छोटा सा बच्चा था
ये सोचकर रौशनी का टुकड़ा , नीचे उतरा दरख़्त से आज़ाद हूँ , आज़ाद ही रहूँगा , हर मुट्ठी की गिरफ़्त से