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Showing posts from February, 2013
तुम कहते हो कि  वो तुम्हारा साया है क्या कभी उसे अँधेरे में भी आज़माया है बहार हों तो शाखों से लिपट जातें हैं गुल पतझड़ में भला किस पत्ते ने साथ निभाया है यार बहुत कड़वा है ज़िन्दगी का ज़ायका कहीं तुमने इसमें सच तो नहीं मिलाया है एक ख़्वाब  घर का पूरा करने के वास्ते कई बार ख़ुदको बुनियाद तले दफनाया है हरेक बूँद के लिए मुझे तडपाने वाले ने सुपुर्द-ए-ख़ाक से पहले मुझको नहलाया है यहाँ से ये ग़ज़ल मेरे वालदैन (PARENTS) के नाम : उनके थप्पड़ का मलाल नहीं, ख़ुशी है मुझे नम आँखों से रातभर माँ ने सहलाया है चौंककर जागना फिर उसकी बांहों में दुबक जाना मेरे बुरे ख्वाबों ने कई रात उन्हें जगाया है तेरे हासिल में अगर वो शामिल नहीं है तो तू जन्नत भी पा ले तो क्या पाया है ख़ुदा को नहीं देखा लेकिन यकीं है 'फ़क़ीर' ख़ुदा  ने  उन्हें  ख़ुद   सा  बनाया  है