Skip to main content

Posts

Showing posts from July, 2017
ये जो बे-ईमानी की बीमारी है खुद से की गयी ईमानदारी है वफ़ादार रहूँ मैं तेरे साथ मेरे साथ तेरी भी ज़िम्मेदारी है तुमने पहनी है जो वफ़ा की कमीज़ खैराती है ये , मैंने ही उतारी है जो तुम नहीं समझते हो मेरी बात ये नासमझी ग़ज़ब होशियारी है चिंगारी भड़काए , चराग़ बुझा दे हवाओं में भी अब तरफदारी है महंगे लिबाज़ में नंगे हो ‘ साहब ’ कहते थे ग़रीबी नहीं , ख़ुद्दारी है
सब *पसमंज़र सामने आने लगे सारे रास्ते ख़ुद को दोहराने लगे बहाव को बना रखी है मंज़िल किनारे जबसे नईया डुबाने लगे नाम उन्होंने बताया अपना ' शमा ' फूंककर फिर चराग़ बुझाने लगे कबतक लड़ता अकेले काली रात से जुगनू मिलके सूरज उगाने लगे समझ लीजिये ख़्वाब में चल रहे होंगे सोते हुए पसीना जो आने लगे उन्होंने जो की चाँद की ख़्वाहिश फ़क़ीर आइना उनके रुख घुमाने लगे