माना कि फूलों की ज़ुबान क़तर जाएंगे खुशबू के शोर से बचकर किधर जाएंगे क्यों नहीं करते सामना वो आईने का उस अजनबी को देखेंगे तो डर जाएंगे वो परिंदा फिर न उड़ सकेगा *आईंदा जो पेट की सुनेगा तो उसके पर जाएंगे शेख की नसीहत 'सुकूं मिलेगा मस्जिद जा' करें जो मस्जिद का रुख तो तेरे घर जाएंगे उन पर इल्ज़ाम कैसे लगाओगे मियाँ नज़रों से कहके जुबां से *मुकर जाएंगे राम -ओ- रहीम तेरे एक घर के झगड़े में कितने बदनसीबों के घोंसले बिखर जाएंगे बुलंदी है शुरुआत गिरने की फ़क़ीर सर पर चढ़ेंगे तो नज़रों से उतर जाएंगे