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Showing posts from January, 2012
दो लबों पर वो एहसास बाकी है कैसे चूमा था मुझे पहली बार.. गहरी आँखों में दर्ज है वो मंज़र कैसे देखा था मुझे पहली बार.. ... मेरी जिस्म की तपिश अब भी आगोश में है कैसे लगाया था गले मुझे पहली बार उँगलियों का दबाव अब भी महसूस करती है कैसे थमा था मैंने उसका हाथ पहली बार अब भी शहद घुल जाते हैं उसके कानों में कैसे पुकारा था मैंने उसे पहली बार अब भी रुलाती है उसको ये याद कैसे हंसाया था मैंने उसे पहली बार आईना हूँ मैं उसके जिस्म ओ रूह का ख़ुद को देखा... देख के मुझे पहली बार कोई जो मुझसे पूछे, वो मेरी क्या है बस एक मुखत्सर सा जवाब 'मेरी दुनिया है' या कहूँगा मेरा वजूद, मेरी जन्नत, मेरी जाँ है नहीं सनम नहीं, वो मेरी माँ है.

तुम्हारी मुस्कान

ये जो तुम्हारे लबों पे मुस्कान हैं यही तुम्हारी पहचान हैं... बेलिहाज़ बेलिबास बगैर किसी मुलम्मे के होंठों के सुरमे से ..... ये जो तुम्हारे लबों पे मुस्कान हैं दवा की कोई दुकान है ज़ख्म कैसे भी हों भर जाते हैं हज़ारों चेहरे तुम्हारे साथ मुस्कुराते हैं शर्म की तहें उतार दो ग़मगीन दुनिया को अपनी मुस्कान... बतौर उधार दो... ये जो तुम्हारे लबों पे मुस्कान हैं पाक कोई वरदान है बदनसीब भी खुशनसीब हो जाता है.... तुम्हारा रुख जो होकर उसके रुख मुस्कुराता है.... उसे अपने होने का मतलब समझ आता है.... ये जो तुम्हारे लबों पे मुस्कान हैं खुद से ही अनजान है..... कि किस कदर मेहरबां है ये किसी के लिए सारा जहाँ है ये किसी की आख़िरी तमन्ना है. तुम्हारे लबों का और मेरी नज़रों का गहना है.... बिखेरते रहो बहारों को टूटने दो सितारों को कि कई मुरादें हैं अधूरी बस मुस्कुरा दो बिन कहे कर दो हर बात पूरी...

मेरा वजूद

ख़ाली गली में दूर तलक एक जानी पहचानी सी आहट मेरा पीछा करती रही. ... छिपती रही डराती रही और मुझसे डरती रही. कुछ क़दम आगे बढ़ते ही छू गयी मुझको वो आहट पलट कर देखा तो मुझसे लम्बी मेरी परछाईं थी और दूर.... बहुत दूर तलक फैली.... तन्हाई थी. मेरी तरह ही खुद में ज़ब्त उसे भी शायद आजादी डंसती थी हर वक़्त... मैं न चौंका न डरा न ही कुछ कहा. न मैं तन्हाई से ना - वाकिफ हूँ, ना ही है वो मुझसे बेखबर. बल्कि..... इन तन्हा रातों की अकेली गलियों में मेरे हर आवारा सफ़र का... थी वो हमसफ़र. दोनों साथ चलते रहे हर बार की तरह बेहद ख़ामोशी से थक गए थे दोनों बहुत काँधे पर लदी उदासी से. कि तभी .... उसी पहचानी सी आहट ने दी आवाज़... हम दोनों घुम गए एक साथ... दिखा: पारदर्शी कोहरे से छनकर कोई मेरे साये से लिपटकर सामने की दीवार पर दर्ज हो गया था. एक शक्ल मेरी परछाईं ओढ़कर मुझमें ग़ुम थी. मैंने दीवार टटोला अपनी परछाईं निचोड़ी तो जाना.... वो मैं नहीं था... तुम थी....