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Showing posts from April, 2013
किसी बिके हुए अखबार सी लगती है ये दुनिया मुझे इश्तिहार सी लगती है कर रहा हूँ मैं उसी से दवा की उम्मीद जो ख़ुद ही कुछ बीमार सी लगती है मसरूफियत में भूल जाता हूँ तुझे बस तन्हाई में इक दरकार सी लगती है वो तेरी वादाफ़रामोशी, वो तेरा हूनर सर सी कभी तू सरकार सी लगती है अपनी हथेली से ढंक लेना तेरा रूख़ तेरी ज़ुल्फ़ें तेरी पहरेदार सी लगती है मौसम ने बदलने का हूनर तुझसे है सीखा एक कभी तो कभी हज़ार सी लगती है तुझे याद करेगी तेरे लफ़्ज़ों से ये दुनिया 'फ़क़ीर' तेरी ग़ज़लें तेरी मज़ार सी लगती