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Showing posts from August, 2011

हमें भी कभी मुहब्बत थी....

तुझे देखकर यक़ीन होता है, ख़ुदा को भी कभी फ़ुरसत थी. शायद वो भी कभी इंसान था, मुझ जैसी ही उसकी हसरत थी. कभी वो भी था मरीज-ए- इश्क़ नासाज उसकी भी तबियत थी. बच गया वो ख़ुदा हो गया, उसकी ख़ुद पर रहमत थी. हम भटक रहे हैं रूह बनकर ज़रुरत है वो जो कभी चाहत थी. मकबरा -ए- फकीर गवाह है, हमें भी कभी मुहब्बत थी.

तक़दीर

एक नजूमे ने कहा था इन्हीं हाथों की लकीरों में दुनिया तमाम है. यही तेरे सफ़र की इब्तिदा है रास्ता है मक़ाम है. मैंने महसूस किया है जबसे वो मिलने लगी है मेरी हथेलियों पर एक नयी लकीर उभरने लगी है.