मेरे ख़्वाब के क़द का एक छोटा सा बच्चा था सोता-जगता था मेरे संग मेरी आँखों में ही बसता था ग़ुमी राहों का मुसाफ़िर था रस्तों को राह दिखाता था अक्सर नक़्शे पे क़लम से अपनी दुनिया बनाता था क़लम को बनाके तलवार हर सरहद मिटाता था सोशल इंजीनियर था वो हदें मिटाना उसे आता था कभी नक़्शे फाड़ पहाड़ी से पुर्ज़ा - पुर्ज़ा उड़ाता था गरीबों में वो रोबिन हुड दुनिया बाँट के आता था ग्लोब गोल नहीं , बस बॉल था पैरों में दुनिया रखता था एटलस के पन्ने फाड़कर नाव बनाया करता था पर नाव , छीन न ले कोई खौफ में भी रहता था सबसे बचाके , सबसे छुपाके दिलवाली जेब में रखता था बेख़ौफ़ भले न हो , बेफ़िक़्र था वो कब किसकी परवाह करता था जिस दुनिया में रहता था वो उस दुनिया को जेब में रखता था मेरे ख़्वाब के क़द का एक छोटा सा बच्चा था