Skip to main content
जिन दो परायी आँखों में मेरा सपना पलता है
मेरी उम्मीद के सांचे में, उसका अरमान ढलता है

रूह बदन का नाता है, खुशबू गुल का रिश्ता है
जिसे पाने की चाहत है, वो मुझे खोने से डरता है

वो मेरा आईना है, मैं लिपटी उससे परछाई हूँ
देखे अक्स ख़ुद का वो, मुझे पागल-पागल कहता है

वो ग़ुम-शुदा है मुझमें और मैं ला-पता हूँ उसमें
उसमें ख़ुद को पाता हूँ, वो ख़ुद से मुझमें मिलता है

रुक - रुक कर कहता है, कहते - कहते रुकता है
मुझसे कहने वाली बातें, ख़ुद से ही कहता रहता है

जो घाटा है वो मुनाफ़ा है, मुनाफ़े में बस घाटा है
इश्क़ में फ़क़ीर चौथी फेल, बस तारे गिनता रहता है

Comments

Popular posts from this blog

मुझसे तेरी खुशबू आती है......

तुम्हारा ज़िक्र लबों पर दबा लेता हूँ तुम्हारा रुख पलकों में छुपा लेता हूँ साँसों में सरगोशी भी है चुप चुप सी, धीमी धीमी धड़कने भी चलती हैं अब दबे क़दमों से, थमी थमी बचा रहा हूँ तुम्हें छिपा रहा हूँ तुम्हें दुनिया से, रुसवाई से कभी कभी अपनी ही परछाई से लेकिन ख़्वाब में तुझसे बातें करने की आदत अक्सर मुझे डराती है अब दिल में छुपाना मुमकिन नहीं मुझसे तेरी खुशबू आती है. मुझसे तेरी खुशबू आती है.

सूत पुत्र कर्ण

1. हे गिरधारी ! हे निस्वार्थ! भले ही परमार्थ तुम्हारी मंशा में निहित है ... विराट ईश्वरीय स्वार्थ क्या अधर्म नहीं है ये, तथाकथित धर्म का... क्या है कोई विकल्प ... इस सूत पुत्र कर्ण का.... 2. दुर्भाग्य ने हो डंसा जिसे जननी ने हो तजा जिसे आगत पीढियां पूछेंगी क्यूँ भगवान् ने भी छला उसे क्या प्रत्युत्तर होगा तुम्हारा प्रश्न के इस मर्म का क्या है कोई विकल्प इस सूत पुत्र कर्ण का..... 3. स्वयंवर का दिन स्मरण करो अन्याय वो मनन करो मेरी चढ़ी प्रत्यंचा रोक ली कहकर मुझे सारथी क्या करूं बताओ मुझे अपमान के इस दहन का... क्या है कोई विकल्प इस सूत पुत्र कर्ण का.... 4. जब सबने मुझे ठुकराया था गांधेरेय ने मुझे अपनाया था सहलाकर घाव मेरे मुझे गले से लगाया था क्या मोल न चुकाऊं मैं मित्रता के चलन का.... क्या है कोई विकल्प इस सूत पुत्र कर्ण का.... 5. पांडव जीते दुर्भाग्य हारकर जुए में कौरव नेत्रहीन हुए स्वार्थ के धुंए में कोई कारण बताओ मुझे अकारण मेरे पतन का क्या है कोई विकल्प इस सूत पुत्र कर्ण का.... 6. इस नश्वर जीवन का तनिक मुझे लोभ नहीं
दो लबों पर वो एहसास बाकी है कैसे चूमा था मुझे पहली बार.. गहरी आँखों में दर्ज है वो मंज़र कैसे देखा था मुझे पहली बार.. ... मेरी जिस्म की तपिश अब भी आगोश में है कैसे लगाया था गले मुझे पहली बार उँगलियों का दबाव अब भी महसूस करती है कैसे थमा था मैंने उसका हाथ पहली बार अब भी शहद घुल जाते हैं उसके कानों में कैसे पुकारा था मैंने उसे पहली बार अब भी रुलाती है उसको ये याद कैसे हंसाया था मैंने उसे पहली बार आईना हूँ मैं उसके जिस्म ओ रूह का ख़ुद को देखा... देख के मुझे पहली बार कोई जो मुझसे पूछे, वो मेरी क्या है बस एक मुखत्सर सा जवाब 'मेरी दुनिया है' या कहूँगा मेरा वजूद, मेरी जन्नत, मेरी जाँ है नहीं सनम नहीं, वो मेरी माँ है.