जिन दो परायी आँखों में मेरा सपना पलता है
मेरी उम्मीद के सांचे में, उसका अरमान ढलता है
मेरी उम्मीद के सांचे में, उसका अरमान ढलता है
रूह बदन का नाता है, खुशबू गुल का रिश्ता है
जिसे पाने की चाहत है, वो मुझे खोने से डरता है
वो मेरा आईना है, मैं लिपटी उससे परछाई हूँ
देखे अक्स ख़ुद का वो, मुझे पागल-पागल कहता है
देखे अक्स ख़ुद का वो, मुझे पागल-पागल कहता है
वो ग़ुम-शुदा है मुझमें और मैं ला-पता हूँ उसमें
उसमें ख़ुद को पाता हूँ, वो ख़ुद से मुझमें मिलता है
उसमें ख़ुद को पाता हूँ, वो ख़ुद से मुझमें मिलता है
रुक - रुक कर कहता है, कहते - कहते रुकता है
मुझसे कहने वाली बातें, ख़ुद से ही कहता रहता है
मुझसे कहने वाली बातें, ख़ुद से ही कहता रहता है
जो घाटा है वो मुनाफ़ा है, मुनाफ़े में बस घाटा है
इश्क़ में फ़क़ीर चौथी फेल, बस तारे गिनता रहता है
इश्क़ में फ़क़ीर चौथी फेल, बस तारे गिनता रहता है
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