(ग़ायब होती गोरैया के नाम....) मेरी सोन चिडैया किधर गयी? मेरी सोन चिडैया किधर गयी? पंख - पंख जो बिखर गयी मेरी सोन चिडैया कहाँ गयी? जगी सुबह आती थी जो जीवन गीत गाती थी जो शाख़ पे बैठी गुलाब थी जो ख़ुली आँखों का ख़्वाब थी जो जाने कब हमसे बिछड़ गयी? मेरी सोन चिडैया कहाँ गयी? सुबह -ओ- शाम जहाँ गुंजन था पेड़ नहीं वो उपवन था बसंत जहाँ हर मौसम था तरक्क़ी में लेकिन अड़चन था घर की छत उठानी थी मासूमों पे विपदा आनी थी खड़े दीवार - ओ- दर हुए कई मासूम बेघर हुए..... घोंसला उसका छूट रहा था तिनका - 2 दिल टूट रहा था देख बेचारी सिहर गयी.... मेरी सोन चिडैया कहाँ गयी? वो मेरे घर भी आती थी दाना - पानी पाती थी वो मेरे घर भी आती थी दाने -दो- दाने ही चखना जितना चाहिए उतना ही रखना सीख हमें दे जाती थी वो मेरे घर भी आती थी.... दिनों बाद उसका पर मिला है उसकी अश्क़ों से तर मिला है हूक उठी दिल में और शर्म से झुका सर मिला है... दिनों बाद उसका पर मिला है पूछने लगे बच्चे मेरे पंख पे उनकी जो नज़र गयी मेरी सोन चिडैया कहाँ गयी?