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Showing posts from August, 2016
वक़्त के चेहरे पर झुर्रियां पड़ जाएंगी बस यही यादें हैं जो बाक़ी रह जाएंगी
उसके नाम में पोशीदा इक नशा है पी लूँ? ये तो तौहीन ए मयक़दा है

राष्ट्र और प्रेम

तेरे घने गेशूओं को अपने चेहरे पर बिखेरे हुए अपनी उन हसीं पलों में जो अब बस तेरे हुए सोचता हूँ कि इस हसीं पल में भी... कोई ग़रीब झोपड़ा जल रहा होगा कोई अमीर जलसा चल रहा होगा कुछ सोने में ढले हाथ आग में घी फेंक रहे होंगे एक झोपड़े की चिता पर ‘महल’ सर्द हाथ सेंक रहे होंगे ------------------------------------------------------------------------------------ तेरे मखमली बदन को बाहों में भरते हुए होंठों से तेरे जिस्म पर शायरी करते हुए मैं सोचता हूँ... मखमली खेतों में दरारें पड़ गयी होंगी खड़ी फसलें खड़े-खड़े सड़ गयी होंगी भूख ने किसान को चोर बनाया होगा चोरों ने मिलकर चोर-चोर चिल्लाया होगा फिर उस नक्सली को जब गोली मारी जाएगी देश से मुफलिसी की तभी ये बीमारी जाएगी ---------------------------------------------------------------------------------- बेबस सा पड़ा मैं तुमपर तुम मुझपर पड़ी निढाल सांसों में लग गयी गाठें खाल से चिपक गयी खाल कमाल ये कि मैं फिर सोचता हूँ.. अंधी अँधेरी खानों में रोशनी ढूंढ रहे होंगे मज़दूर अपनी-अपनी ताबूतों में उतरने को हैं जो मजबूर इन्हीं खानों में एकदिन वो जिंदा दफ़न हो जाएंगे बनके ब
बिक रही है जो सरेबाजार किसी सामान की तरह तमन्ना थी कोई समझे उसे भी कभी इंसान की तरह मेरे ही माँ – बाप अब मेरे रिश्तेदार हो गए जाता हूँ अब अपने ही घर किसी मेहमान की तरह उसे याद करने से पहले करता हूँ *वुज़ू मैं और नाम लेता हूँ ऐसे, जैसे पाक *अज़ान की तरह इंसान है जब तक, उसका है इंसानों से *राब्ता बन जाएगा पत्थर, बनाया जो भगवान की तरह हालांकि कोई क़ीमत नहीं, पर वो बेशक़ीमती है ख़रीद नहीं पाया कोई उसे, उसके ईमान की तरह बारिश की दुआ मेरी, बन जाए न बददुआ कोई कुम्हार की तरह सोचूं कि सोचूं किसान की तरह इस तरह रहता हूँ इस शहर में ऐ फ़क़ीर! मुसलमां में हिन्दू, हिन्दुओं में मुसलमान की तरह *वुज़ू - Pious ritual *अज़ान - Prayer *राब्ता - Relation