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Showing posts from May, 2013
रौशनी का पता: ये अँधेरा भला क्या है? बस रौशनी का पता है. तहें इसकी खंगालिए तो एक टुकड़ा रौशनी का इसी में गुमशुदा है. परछाइयों से घबराना क्यूँ? यही तो हमसफ़र है, हम - रास्ता  है. किसी ने काली रात पर चिपका दिया है.... चाँद का पोस्टर बदलाव की हवा से तिरगी (अँधेरे) का तख़्त हिलने लगा है. एक जुगनू ने कर दिया है शब् (रात) में सुराख़.... टिमटिमा कर नए दिन का परचम लहरा रहा है. ---FAQEER
"गंगा" इस पानी में ये बू सी क्यूँ है? बेरंग सी हुआ करती थी अब ये लहू सी क्यूँ है? क्यूँ लगती है ये कभी नमकीन मुझे किसी के हैं ये अश्क़..... क्यूँ है इस दहशत पे यक़ीन मुझे? शिव की जटाओं में ये विदेशी रिबन किसका है? प्यास भरी हैं बोतलों में लुटा ज़मीर -ओ- ज़ेहन किसका है? छिनकर हमसे सुराही कटोरा हमें थमाया है किसने? दरिया को ताल आख़िर बनाया है किसने? हर घूँट में ज़हर -ए- तरक्क़ी मिलाया है किसने? जिसके लहू से धोये है तूने हर पाप .... हर दाग़ ऐ खूं - हराम दुनिया कर कुछ तो याद आँखों से बनके अश्क़ रिसती वही है जुनूं - सी खूं - सी नसों में बसती वही है. जिस माँ की दूध ने सींची है तरक्क़ी वो बिजली, ये पटरी वो उड़न तश्तरी ये आटा चक्की क्या सिला दिया है उसके ममता का ऐ इंसां घोल दिया ज़हर उसमें मौत कर दी उसकी पक्की दी है उसे तुमने बस आठ साल की मोहलत जूडस  चाँदी के तीस सिक्के!!!! तुम्हें पचेगी नहीं ये दौलत जूडस  चाँदी के तीस सिक्के!!!! तुम्हें पचेगी नहीं ये दौलत............
कर रहे हैं हरपल ख़ुदकुशी देखिये  कहते हैं किसको ज़िन्दगी देखिये  आँखों पर छाने लगेगा अँधेरा  पल भर जो रौशनी देखिये  डंक मरती हैं चीटियाँ जुबां से अलफ़ाज़ है कितनी चाशनी देखिये रोज़ा से कब होती हैं मुरादें पूरी मुफ़लिस की फाकाकशी देखिये अपनी गिरेबां झाँकने से अच्छा फ़क़ीर ख़ुदा में कोई कमी देखिये  इसी मिज़ाज लेकिन अलग खानदान के चं द शेर: कहने को जुदा हैं मुझ से दिखती हैं चाहे कहीं देखिये अपनी तकदीर जानने के लिए अपनी नहीं उनकी ज़बीं देखिये दूर से हर चीज़ लगती है हसीं कभी चाँद से आप ज़मीं देखिये