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Showing posts from September, 2011
लताजी के लिए तुम गुमशुदा नहीं हो पाओगी कहीं लापता नहीं हो पाओगी... मेरे सरीखे कितने दिल ओ- ज़ेहन पर दस्तक है तुम्हारी तुम कोई आदत हो, लत हो लता हो लाईलाज बीमारी तुम्हारे हर लफ्ज़ मारतें हैं हमें किस्तों में तुम्हारी गुनगुनाहट से है नाता और क्या रखा है रिश्तों में जाने कैसे मेरी हर ख़ुशी हर ग़म का तुम्हें पता है ज़िन्दगी में इतनी दखलंदाजी किसको खटकती है, कब खता है तुमने अपनी आवाज़ को दी है सूरत कोई सुनता हूँ तो लगता है वीणा लिए गा रही है मूरत कोई तुम तन्हा होकर भी तन्हा नहीं हो सब हैं तुम्हारे तुम भी हर कहीं हो ऐ आवाज़ को पहचान बनाने वाली ऐ बुलंदियों को पायदान बनाने वाली ख़ुदा हैरत में है ख़ुद के करिश्में पर ऐ बूत! बूतकार को हैरान बनाने वाली.....

दहशतगर्द....

हर तरफ बारूद की ये बू क्यूँ है.... चिथड़ी उम्मीदें हैं ख़ाबों का लहू है... जिनके रंगे हैं हाथ लहू से क्या वो इंसान की औलाद नहीं हैं... हैं अगर इन्सान तो क्यूँ इंसान से जज़्बात नहीं है. जिनके आस्तीन भीगी हैं लहू में घर वो भी लौट कर जायेंगे... देखकर अपने बच्चों की ही लाशें कैसे उनसे नज़र मिलायेंगे... ये कैसी इबादत, किस खुदा को खुश कर रहे हैं.... फ़िक्र है न उसकी न उससे डर रहे हैं... लाशों में शामिल है लाश ख़ुदा की... अल्लाह! गुमराह हैं, मार रहे हैं मर रहे हैं.... रामू को है अभी भी अपने लख्त-ए- जिगर का इंतज़ार ताक रही हैं बूढी आँखें ख़बरों पर नहीं उनको ऐतबार तबस्सुम की अभी अभी तो हुई थी हाथ पीली मेहँदी के रंग उतर आये आँखों में लहू से है आँख गीली नन्हे अली की टिकी हैं दरवाज़े पर आँखें आज उसकी साल गिरह है अब्बा आयेंगे, लायेंगे जीप अब उसका इंतज़ार लम्बा है, बेवजह है श्वेता टूट गयी, रेजा रेजा हो गयी उसकी आँखें भर आई हाँ यही है भईया मेरा देखकर बोली राखी बंधी कलाई बेवा हुई हैं तेरी अपनी ही बहनें उठा है तेरे ही सर से बाप का साया पीकर इस वतन का दूध वाह तूने क्या