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Showing posts from March, 2016
मान लेने में और यक़ीन में फ़र्क़ है  दलदल में और ज़मीन में फ़र्क़ है  क़िताबें चाटते हैं क़िताबी कीड़े भी  पढ़े-लिखे और ज़हीन में फ़र्क़ है
जिन दो परायी आँखों में मेरा सपना पलता है मेरी उम्मीद के सांचे में, उसका अरमान ढलता है रूह बदन का नाता है, खुशबू गुल का रिश्ता है जिसे पाने की चाहत है, वो मुझे खोने से डरता है वो मेरा आईना है, मैं लिपटी उससे परछाई हूँ देखे अक्स ख़ुद का वो, मुझे पागल-पागल कहता है वो ग़ुम-शुदा है मुझमें और मैं ला-पता हूँ उसमें उसमें ख़ुद को पाता हूँ, वो ख़ुद से मुझमें मिलता है रुक - रुक कर कहता है, कहते - कहते रुकता है मुझसे कहने वाली बातें, ख़ुद से ही कहता रहता है जो घाटा है वो मुनाफ़ा है, मुनाफ़े में बस घाटा है इश्क़ में फ़क़ीर चौथी फेल, बस तारे गिनता रहता है
जो था कभी पोशीदा वो पोशीदा फिर नहीं रहा जो था ज़ाहिर वो फिर कभी ज़ाहिर नहीं रहा ये मंज़िलें ही हैं सफर की सबसे बड़ी अड़चन मिली जो मंज़िल तो मुसाफिर मुसाफिर नहीं रहा उसे ख़ुदा की अज़मत पर यक़ीन नहीं था कभी तुझसे मिला है जब से वो, तो काफ़िर नहीं रहा इश्क़ है , इश्क़ पाने में खुद को खो देना जनाज़े में उठी अमृता , खबर उडी साहिर नहीं रहा अब तो जब जी चाहे छू लूं उसे, आँखें मूंदकर छुपने - छुपाने के खेल में अब वो माहिर नहीं रहा तेरी बात मान लेता तो बात खत्म ही हो जाती ग़ुफ़्तगू की चाहत में तुझसे कभी मुत्तासिर नहीं रहा आ पैरों में वक़्त बांध के , मौत से ज़रा पहले फिर न कहना , फ़क़ीर अब मेरा मुन्तज़िर नहीं रहा
कोई कसर नहीं छोड़ेगी , अपना निवाला बनाने में जाने क्या मज़ा आएगा , मिट्टी को मिट्टी खाने में बारहा लहरें तोडती हैं , बारहा वो बनाता है घरोंदा मुझे भी बच्चों सा हौसला दे, घोंसला सजाने में तितलियों पर है असर उसके काले जादू का डूब कर मर जाना चाहतीं हैं , लबों के पैमाने में एक ख्वाब को देखा रहा हूँ मैं करवटें लेते हुए ख्वाब मेरा टूट ही न जाए, कहीं उसे जगाने में उसे लगता है मुश्किल है, तो मुमकिन भी होगा पागल कब से लगा है, पानी पर तस्वीर बनाने में नज़रों से किया वादा , जुबां से मुकर गए फ़क़ीर यही तो फ़रक है नज़रिये में , और नज़र आने में