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टूटना

टूटूं तो टूटूं, सितारों की तरह
टूटने में टूटने का हुनर हो

या बिखर जाऊं टूटके आईने सा
तू ही तू हर टुकड़े के अंदर हो

टूटूं तेरी आँखों से जैसे शबनम
एक बूंद में सारा समंदर हो

तेरे हाथों से छूट जाऊं कभी यूँही
तुझसे ही टूटना मेरा मुक़्क़दर हो

मैं जो टूटूं, तू तड़पे मछलियों सी
इक तड़पती आह तेरे लब पर हो

ऐसे टूटूं जैसे शजर से कोई शाख
ताउम्र तुझे अफ़सोस मुझे खोकर हो

दिल का टूटना भी क्या कोई टूटना है फ़क़ीर?


Comments

  1. बहुत भावपूर्ण रचना है। मेरी रचनाओं को भी पढें
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