Skip to main content

Posts

Showing posts from September, 2013
आइने में इक अजनबी को देखके सिहर गए अपने ही अक्स से आज वो कैसे डर गए शेख की नसीहत 'सुकूं मिलेगा मस्जिद जा' किया मस्जिद का *रुख़ और तेरे घर गए वो  परिंदा  अब  न  उड़  सकेगा  *आईंदा पेट  की  सुनी  तो  उसके  *पर  गए उन  पर  इल्ज़ाम  कैसे  लगाओगे  मियाँ नज़रों से कहकर जो जुबां से *मुकर गए हमें  था  रिश्ते  का  ख़्याल  इस  क़दर सुनते  रहे, चुप  रहे, हाँ  हम  डर  गए राम -ओ- रहीम तेरे एक घर के झगड़े  में कितने बदनसीबों के घोंसले बिखर गए बुलंदी  है  शुरुआत  गिरने  की  फ़क़ीर सर  पर  चढ़े  जो  नज़रों  से  उतर  गए *रुख़ - turn towards *आईंदा - In future *पर - Wings *मुकर - Denied
मुसीबतों से किया वादा हमने निभाया है  हवाओं आओ, तुम्हारे *रुख़ चराग़ जलाया है  हार गए हम उसपर अपना दिल हार कर  वो भी कहाँ जीता, जिसने हमें हराया है  खंज़रों-से पत्थरों के *मुक़ाबिल पानी को कर दिया दरिया ने अपना हौसला, ऐसे आज़माया है इस खेल में हारते ही हैं सब, जानता हूँ मैं जानबूझकर, दांव पर, सबकुछ लगाया है हवा भी है तरफ़दारी की *तलब की मारी इक चिंगारी जलायी तो एक चराग़ बुझाया है एक लकड़ी के घर की हवस में तूने इंसां न जाने कितने परिंदों का घर गिराया है उस मखमल से बदन का हौसला तो देखिये बबूल की *नेजों पे जिसने घोसला सजाया है देख पत्थरों के दिल पर पानी की *नक्काशियां 'फ़क़ीर' ने साहिल पर रेत का घर बनाया है * रुख़ -  Towards * मुक़ाबिल -  In confrontation * तलब -  Wish * नेजों -  Spear * नक्काशियां -  Carving