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Showing posts from December, 2011

फेसबुक : चेहरों की किताब

ख़ुद एक चेहरे पर चढाये हज़ार चेहरे. अजनबी तहें खंगालने को बेकरार चेहरे. नंगे होने से जो कतराते हैं, हर वक़्त मुखौटों के तलबगार चेहरे. तेरे मेरे उसके शुमार - बेशुमार चेहरे, साथ हैं कुछ, कुछ दरकिनार चेहरे. काले गोरे सस्ते मंहगे हासिल मुश्किल चेहरों के है ‘खुले बाज़ार’ चेहरे. और हो गया तन्हा इनसे मिलके, तन्हाई की गिरफ़्त में हैं गिरफ़्तार चेहरे. जाने - पहचाने अजनबी से हैं कुछ, मकान -ए- दिल तोड़कर हुए बेज़ार चेहरे. सवालों से कभी नंगी तलवार चेहरे, और कभी जवाबों से मझधार चेहरे. जाने फिर क्यूँ ये खुशफहमी है, छिपे हैं इनमें ही पतवार चेहरे. चलो इसके बहाने वो क़रीब तो आये, बाबदन फासलों से दो लाचार चेहरे. इन्हीं किताबी चेहरों की है इक किताब, तिलस्मी चेहरे दर्ज हैं जिसमें बेहिसाब. उम्मीद की जो इक लौ जलाता है, लापता चेहरों का पता ढूंढ कर लाता है......
शहर बड़ा आलीशान है ये, पश्चिम की खुली दुकान है ये. मॉल है मण्डी के कब्र पर, दरअसल कोई श्मशान है ये. ... कौन कर रहा है भूखों की बातें, नंगा साला बेईमान है ये. चूल्हे नहीं चिता जलाओ, दिल्ली का यही फ़रमान है ये. रोज़ का कमा रहा है ३४ रुपये, लुच्चा भिखारी नहीं, धनवान है ये. भूखी बस्ती में नयी किलकारी, चार दिनों की मेहमान है . तरक्की की राह में आया पीपल, कटता हुआ भगवान् है ये. भूखा मर रहा है अन्नदाता, नयी तरक्की की पहचान है ये. कफ़न खोल कर हाकिम बोला, लगता है, हिंदुस्तान है ये. समझो न इसको अमन 'फ़कीर' चिंगारी कोई तूफ़ान है ये.