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Showing posts from 2013
बड़ा जादू है तेरे इस शहर में चाँद दिखा मुझे भरी दोपहर में आ दिखा दूं कैसा होता है ख़ुदा झाँक तो मेरी आईने सी नज़र में तुम्हें याद करेंगे तुमसे फ़ुरसत पाकर ख्वाब रात में तेरा ख्य़ाल सहर में रात भर तड़पा, करवटें बदली तेरी याद का कंकड़ मेरे बिस्तर में धूप भी जिसके सामने लगे हैं सांवली हुनर का हुस्न है, हुस्न के हुनर में एक दूसरे के लिए बन गए हैं दीवार कई घर मिले मुझे एक ही घर में साथ चलने से ही कोई साथ नहीं होता हमसफ़र नहीं है, साथ हैं हम सफ़र में *सहर – Morning
आइने में इक अजनबी को देखके सिहर गए अपने ही अक्स से आज वो कैसे डर गए शेख की नसीहत 'सुकूं मिलेगा मस्जिद जा' किया मस्जिद का *रुख़ और तेरे घर गए वो  परिंदा  अब  न  उड़  सकेगा  *आईंदा पेट  की  सुनी  तो  उसके  *पर  गए उन  पर  इल्ज़ाम  कैसे  लगाओगे  मियाँ नज़रों से कहकर जो जुबां से *मुकर गए हमें  था  रिश्ते  का  ख़्याल  इस  क़दर सुनते  रहे, चुप  रहे, हाँ  हम  डर  गए राम -ओ- रहीम तेरे एक घर के झगड़े  में कितने बदनसीबों के घोंसले बिखर गए बुलंदी  है  शुरुआत  गिरने  की  फ़क़ीर सर  पर  चढ़े  जो  नज़रों  से  उतर  गए *रुख़ - turn towards *आईंदा - In future *पर - Wings *मुकर - Denied
मुसीबतों से किया वादा हमने निभाया है  हवाओं आओ, तुम्हारे *रुख़ चराग़ जलाया है  हार गए हम उसपर अपना दिल हार कर  वो भी कहाँ जीता, जिसने हमें हराया है  खंज़रों-से पत्थरों के *मुक़ाबिल पानी को कर दिया दरिया ने अपना हौसला, ऐसे आज़माया है इस खेल में हारते ही हैं सब, जानता हूँ मैं जानबूझकर, दांव पर, सबकुछ लगाया है हवा भी है तरफ़दारी की *तलब की मारी इक चिंगारी जलायी तो एक चराग़ बुझाया है एक लकड़ी के घर की हवस में तूने इंसां न जाने कितने परिंदों का घर गिराया है उस मखमल से बदन का हौसला तो देखिये बबूल की *नेजों पे जिसने घोसला सजाया है देख पत्थरों के दिल पर पानी की *नक्काशियां 'फ़क़ीर' ने साहिल पर रेत का घर बनाया है * रुख़ -  Towards * मुक़ाबिल -  In confrontation * तलब -  Wish * नेजों -  Spear * नक्काशियां -  Carving
रौशनी का पता: ये अँधेरा भला क्या है? बस रौशनी का पता है. तहें इसकी खंगालिए तो एक टुकड़ा रौशनी का इसी में गुमशुदा है. परछाइयों से घबराना क्यूँ? यही तो हमसफ़र है, हम - रास्ता  है. किसी ने काली रात पर चिपका दिया है.... चाँद का पोस्टर बदलाव की हवा से तिरगी (अँधेरे) का तख़्त हिलने लगा है. एक जुगनू ने कर दिया है शब् (रात) में सुराख़.... टिमटिमा कर नए दिन का परचम लहरा रहा है. ---FAQEER
"गंगा" इस पानी में ये बू सी क्यूँ है? बेरंग सी हुआ करती थी अब ये लहू सी क्यूँ है? क्यूँ लगती है ये कभी नमकीन मुझे किसी के हैं ये अश्क़..... क्यूँ है इस दहशत पे यक़ीन मुझे? शिव की जटाओं में ये विदेशी रिबन किसका है? प्यास भरी हैं बोतलों में लुटा ज़मीर -ओ- ज़ेहन किसका है? छिनकर हमसे सुराही कटोरा हमें थमाया है किसने? दरिया को ताल आख़िर बनाया है किसने? हर घूँट में ज़हर -ए- तरक्क़ी मिलाया है किसने? जिसके लहू से धोये है तूने हर पाप .... हर दाग़ ऐ खूं - हराम दुनिया कर कुछ तो याद आँखों से बनके अश्क़ रिसती वही है जुनूं - सी खूं - सी नसों में बसती वही है. जिस माँ की दूध ने सींची है तरक्क़ी वो बिजली, ये पटरी वो उड़न तश्तरी ये आटा चक्की क्या सिला दिया है उसके ममता का ऐ इंसां घोल दिया ज़हर उसमें मौत कर दी उसकी पक्की दी है उसे तुमने बस आठ साल की मोहलत जूडस  चाँदी के तीस सिक्के!!!! तुम्हें पचेगी नहीं ये दौलत जूडस  चाँदी के तीस सिक्के!!!! तुम्हें पचेगी नहीं ये दौलत............
कर रहे हैं हरपल ख़ुदकुशी देखिये  कहते हैं किसको ज़िन्दगी देखिये  आँखों पर छाने लगेगा अँधेरा  पल भर जो रौशनी देखिये  डंक मरती हैं चीटियाँ जुबां से अलफ़ाज़ है कितनी चाशनी देखिये रोज़ा से कब होती हैं मुरादें पूरी मुफ़लिस की फाकाकशी देखिये अपनी गिरेबां झाँकने से अच्छा फ़क़ीर ख़ुदा में कोई कमी देखिये  इसी मिज़ाज लेकिन अलग खानदान के चं द शेर: कहने को जुदा हैं मुझ से दिखती हैं चाहे कहीं देखिये अपनी तकदीर जानने के लिए अपनी नहीं उनकी ज़बीं देखिये दूर से हर चीज़ लगती है हसीं कभी चाँद से आप ज़मीं देखिये
किसी बिके हुए अखबार सी लगती है ये दुनिया मुझे इश्तिहार सी लगती है कर रहा हूँ मैं उसी से दवा की उम्मीद जो ख़ुद ही कुछ बीमार सी लगती है मसरूफियत में भूल जाता हूँ तुझे बस तन्हाई में इक दरकार सी लगती है वो तेरी वादाफ़रामोशी, वो तेरा हूनर सर सी कभी तू सरकार सी लगती है अपनी हथेली से ढंक लेना तेरा रूख़ तेरी ज़ुल्फ़ें तेरी पहरेदार सी लगती है मौसम ने बदलने का हूनर तुझसे है सीखा एक कभी तो कभी हज़ार सी लगती है तुझे याद करेगी तेरे लफ़्ज़ों से ये दुनिया 'फ़क़ीर' तेरी ग़ज़लें तेरी मज़ार सी लगती 
पैरों में बाँध के सफ़र, चलो कहीं दूर चलें खोजें कोई लापता डगर, चलो कहीं दूर चलें दीद की सरहदों तलक तन्हाई हों जहाँ नजारों से भर लें नज़र, चलो कहीं दूर चलें बहुत थक गया है, आराम चाहिए उसे भी वक़्त भी सुस्ताये जहाँ रुककर, चलो कहीं दूर चलें दुनिया, ये दुनियादारी; जैसे कोई लाईलाज बीमारी हो दुनिया जहाँ दुनिया से बेहतर, चलो कहीं दूर चलें महफ़िल हो फ़िज़ा जहाँ, पर्वत करे शायरी सफ़ेद स्याही से नीले पन्ने पर, चलो कहीं दूर चलें आवारगी होगी सफ़र अपना, और ग़ुमशुदगी मंज़िल खो जाने का सीखें हूनर, चलो कहीं दूर चलें वही कि जहाँ संगदिल पिघल, बनतें हैं दरिया गुनगुनाते रहते हैं सफ़र भर, चलो कहीं दूर चलें
तुम जीते और मैं हारा, चलो क़िस्सा खत्म करें क्या टूटा दिल बस हमारा, चलो क़िस्सा खत्म करें तुम तौलते हो इंसान की औक़ात दौलत मैं, और ईमां है पैमां हमारा, चलो क़िस्सा खत्म करें मिलाने को तो यूं मिलते हैं ज़मीन-ओ- आसमां भी बस किनारे को न मिला किनारा, चलो क़िस्सा खत्म करें माना कि हूँ कमज़ोर, गिरेबां पकड़ती है दुनिया मेरी तुम्हारे क़दमों में है जग सारा, चलो क़िस्सा खत्म करें तुम्हारी बददुआ क्यूँ हुई बेअसर हमसे पूछो, मरके कोई मरता है दोबारा, चलो क़िस्सा खत्म करें चल ऐ दिल कि चलें आवाज़ के सरहदों से दूर हम मुड़के न देख किसने पुकारा, चलो क़िस्सा खत्म करें ख्वाहिश है कि पूरी हो बस तुम्हारी ख्वाहिश फ़क़ीर बन जाएगा टूटा तारा, चलो क़िस्सा खत्म करें
तुम कहते हो कि  वो तुम्हारा साया है क्या कभी उसे अँधेरे में भी आज़माया है बहार हों तो शाखों से लिपट जातें हैं गुल पतझड़ में भला किस पत्ते ने साथ निभाया है यार बहुत कड़वा है ज़िन्दगी का ज़ायका कहीं तुमने इसमें सच तो नहीं मिलाया है एक ख़्वाब  घर का पूरा करने के वास्ते कई बार ख़ुदको बुनियाद तले दफनाया है हरेक बूँद के लिए मुझे तडपाने वाले ने सुपुर्द-ए-ख़ाक से पहले मुझको नहलाया है यहाँ से ये ग़ज़ल मेरे वालदैन (PARENTS) के नाम : उनके थप्पड़ का मलाल नहीं, ख़ुशी है मुझे नम आँखों से रातभर माँ ने सहलाया है चौंककर जागना फिर उसकी बांहों में दुबक जाना मेरे बुरे ख्वाबों ने कई रात उन्हें जगाया है तेरे हासिल में अगर वो शामिल नहीं है तो तू जन्नत भी पा ले तो क्या पाया है ख़ुदा को नहीं देखा लेकिन यकीं है 'फ़क़ीर' ख़ुदा  ने  उन्हें  ख़ुद   सा  बनाया  है      

आओ न

ख़्यालों से नहीं दरवाज़े से कभी आओ न रू-ब-रू आकर ऐ ख़्वाब मेरे ख़्वाब से कभी जगाओ न कभी यूंही आओ छत पे तुम अमावस को पूनम बनाओ न कर दो सूरज को मद्धम कभी कभी रुख़ से पर्दा हटाओ न कब तक रहोगी परछाईं बनके परछाईं को बदन बनाओ न ख़्यालों से नहीं दरवाज़े से कभी आओ न ......

वक़्त यहीं पे थम जायेगा

अपनी उँगलियों के नाज़ुक दस्ताने मेरे हाथों में रहने दो बेलफ्ज़ कर दो लब अपने आँखों को अब कहने दो मैं हूँ 'तुम', तुम हो 'मैं' चूम लूं मैं अब - लब अपने दो बहता लम्हा जम जायेगा वक़्त यहीं पे थम जायेगा ------- 1. इश्क़  में लज्ज़त आएगी लम्स को लम्स चखने दो साँसों की धीमी आंच पर मद्धम - मद्धम पकने दो दुनिया से छुपाके इश्क़ मिठाई दिल की आड़ में रखने दो बहता लम्हा जम जायेगा वक़्त यहीं पे थम जायेगा ------- 2. ओढ़ लूं तुमको सरापा मैं आगोश का कम्बल ढकने दो अपने सांचे में थाम मुझे तुम-सा मुझको दिखने दो खुद को रख दूं गिरवी मैं जो अपने पास रखने दो बहता लम्हा जम जायेगा वक़्त यहीं पे थम जायेगा ------- 3.