पैरों में बाँध के सफ़र, चलो कहीं दूर चलें खोजें कोई लापता डगर, चलो कहीं दूर चलें दीद की सरहदों तलक तन्हाई हों जहाँ नजारों से भर लें नज़र, चलो कहीं दूर चलें बहुत थक गया है, आराम चाहिए उसे भी वक़्त भी सुस्ताये जहाँ रुककर, चलो कहीं दूर चलें दुनिया, ये दुनियादारी; जैसे कोई लाईलाज बीमारी हो दुनिया जहाँ दुनिया से बेहतर, चलो कहीं दूर चलें महफ़िल हो फ़िज़ा जहाँ, पर्वत करे शायरी सफ़ेद स्याही से नीले पन्ने पर, चलो कहीं दूर चलें आवारगी होगी सफ़र अपना, और ग़ुमशुदगी मंज़िल खो जाने का सीखें हूनर, चलो कहीं दूर चलें वही कि जहाँ संगदिल पिघल, बनतें हैं दरिया गुनगुनाते रहते हैं सफ़र भर, चलो कहीं दूर चलें