Skip to main content

Posts

Showing posts from March, 2013
पैरों में बाँध के सफ़र, चलो कहीं दूर चलें खोजें कोई लापता डगर, चलो कहीं दूर चलें दीद की सरहदों तलक तन्हाई हों जहाँ नजारों से भर लें नज़र, चलो कहीं दूर चलें बहुत थक गया है, आराम चाहिए उसे भी वक़्त भी सुस्ताये जहाँ रुककर, चलो कहीं दूर चलें दुनिया, ये दुनियादारी; जैसे कोई लाईलाज बीमारी हो दुनिया जहाँ दुनिया से बेहतर, चलो कहीं दूर चलें महफ़िल हो फ़िज़ा जहाँ, पर्वत करे शायरी सफ़ेद स्याही से नीले पन्ने पर, चलो कहीं दूर चलें आवारगी होगी सफ़र अपना, और ग़ुमशुदगी मंज़िल खो जाने का सीखें हूनर, चलो कहीं दूर चलें वही कि जहाँ संगदिल पिघल, बनतें हैं दरिया गुनगुनाते रहते हैं सफ़र भर, चलो कहीं दूर चलें
तुम जीते और मैं हारा, चलो क़िस्सा खत्म करें क्या टूटा दिल बस हमारा, चलो क़िस्सा खत्म करें तुम तौलते हो इंसान की औक़ात दौलत मैं, और ईमां है पैमां हमारा, चलो क़िस्सा खत्म करें मिलाने को तो यूं मिलते हैं ज़मीन-ओ- आसमां भी बस किनारे को न मिला किनारा, चलो क़िस्सा खत्म करें माना कि हूँ कमज़ोर, गिरेबां पकड़ती है दुनिया मेरी तुम्हारे क़दमों में है जग सारा, चलो क़िस्सा खत्म करें तुम्हारी बददुआ क्यूँ हुई बेअसर हमसे पूछो, मरके कोई मरता है दोबारा, चलो क़िस्सा खत्म करें चल ऐ दिल कि चलें आवाज़ के सरहदों से दूर हम मुड़के न देख किसने पुकारा, चलो क़िस्सा खत्म करें ख्वाहिश है कि पूरी हो बस तुम्हारी ख्वाहिश फ़क़ीर बन जाएगा टूटा तारा, चलो क़िस्सा खत्म करें