Skip to main content

Posts

Showing posts from May, 2012

एक खोया क़स्बा.....

दूर... बहुत दूर है घर मेरा इतनी दूर कि ख़्वाबों के ज़रिये भी वहां पहुँचने में दिनों लग जाते हैं..... दरअसल ख़्वाब ही मेहमान सरीखे कभी कभार ही आते हैं...... नींद की मेहरबानी है. या यूं कहिये कि मनमानी हैं. ख़ैर, घर से चार छलांग लगाते ही एक पुराना सा मंदिर है. अभी दूरी बढ़ गयी हो तो पता नहीं. बचपन में लेकिन इससे ज्यादा वक़्त कभी लगा नहीं. मंदिर के अन्दर कई बूत हैं. बूतों में लोग ख़ुदा ढूंढतें हैं. और ख़ुदा..... दिन - दिन भर मंदिर के अन्दर - बाहर खेलते कूदतें हैं. प्रसाद लूटतें हैं. पास ही एक तालाब है. जिसके ठहरे शीशे में आसमान अपना चेहरा सजाता है. कभी सिर पर सूरज, कभी चाँद लगाता है. रातों को हमने कई दफ़ा मिटटी के ढेलों से चाँद तोडा है..... रेजा - रेजा करके छोड़ा है. टूटकर वो लहरों के साथ दूर दूर तक बिखर जाता था. बड़ा ढीठ था मौका मिलते ही पानी के ठहरते ही फिर जुड़कर...... खाने को दोमट मिटटी के पत्थर चला आता था. हमारी तरह शायद उसको भी सौंधी खुशबू मिटटी की बहुत भाती थी

पानी

--> इस पानी में ये बू सी क्यूँ है? बेरंग सी हुआ करती थी अब ये लहू सी क्यूँ है? क्यूँ लगती है ये कभी नमकीन मुझे किसी के हैं ये अश्क़ ..... क्यूँ इस दहशत पे है यक़ीन मुझे ? शिव की जटाओं में ये विदेशी रिबन किसका है? प्यास भरी हैं बोतलों में लुटा ज़मीर -ओ- ज़ेहन किसका है? छीनकर हमसे सुराही कटोरा हमें थमाया है किसने? दरिया को ताल आख़िर बनाया है किसने? हर घूँट में ज़हर -ए- तरक्क़ी मिलाया है किसने? जिसके लहू से धोये है तूने हर पाप .... हर दाग़ ऐ खूं - हराम दुनिया कर कुछ तो याद आँखों से बनके अश्क़ रिसती वही है जुनूं - सी खूं - सी नसों में दौड़ती वही है. जिस माँ की दूध ने सींची है तरक्क़ी वो बिजली, ये पटरी वो उड़न तश्तरी ये आटा चक्की क्या सिला दिया है उसके ममता का ऐ इंसां घोल दिया ज़हर उसमें मौत कर दी उसकी पक्की दी है उसे तुमने बस आठ साल की मोहलत जूडस चाँदी के तीस सिक्के!!!! तुम्हें पचेगी नहीं ये दौलत जूडस चाँदी के तीस सिक्के!!!! तुम्हें पचेगी नहीं ये दौलत............

सूत पुत्र कर्ण

1. हे गिरधारी ! हे निस्वार्थ! भले ही परमार्थ तुम्हारी मंशा में निहित है ... विराट ईश्वरीय स्वार्थ क्या अधर्म नहीं है ये, तथाकथित धर्म का... क्या है कोई विकल्प ... इस सूत पुत्र कर्ण का.... 2. दुर्भाग्य ने हो डंसा जिसे जननी ने हो तजा जिसे आगत पीढियां पूछेंगी क्यूँ भगवान् ने भी छला उसे क्या प्रत्युत्तर होगा तुम्हारा प्रश्न के इस मर्म का क्या है कोई विकल्प इस सूत पुत्र कर्ण का..... 3. स्वयंवर का दिन स्मरण करो अन्याय वो मनन करो मेरी चढ़ी प्रत्यंचा रोक ली कहकर मुझे सारथी क्या करूं बताओ मुझे अपमान के इस दहन का... क्या है कोई विकल्प इस सूत पुत्र कर्ण का.... 4. जब सबने मुझे ठुकराया था गांधेरेय ने मुझे अपनाया था सहलाकर घाव मेरे मुझे गले से लगाया था क्या मोल न चुकाऊं मैं मित्रता के चलन का.... क्या है कोई विकल्प इस सूत पुत्र कर्ण का.... 5. पांडव जीते दुर्भाग्य हारकर जुए में कौरव नेत्रहीन हुए स्वार्थ के धुंए में कोई कारण बताओ मुझे अकारण मेरे पतन का क्या है कोई विकल्प इस सूत पुत्र कर्ण का.... 6. इस नश्वर जीवन का तनिक मुझे लोभ नहीं