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Showing posts from January, 2013

आओ न

ख़्यालों से नहीं दरवाज़े से कभी आओ न रू-ब-रू आकर ऐ ख़्वाब मेरे ख़्वाब से कभी जगाओ न कभी यूंही आओ छत पे तुम अमावस को पूनम बनाओ न कर दो सूरज को मद्धम कभी कभी रुख़ से पर्दा हटाओ न कब तक रहोगी परछाईं बनके परछाईं को बदन बनाओ न ख़्यालों से नहीं दरवाज़े से कभी आओ न ......

वक़्त यहीं पे थम जायेगा

अपनी उँगलियों के नाज़ुक दस्ताने मेरे हाथों में रहने दो बेलफ्ज़ कर दो लब अपने आँखों को अब कहने दो मैं हूँ 'तुम', तुम हो 'मैं' चूम लूं मैं अब - लब अपने दो बहता लम्हा जम जायेगा वक़्त यहीं पे थम जायेगा ------- 1. इश्क़  में लज्ज़त आएगी लम्स को लम्स चखने दो साँसों की धीमी आंच पर मद्धम - मद्धम पकने दो दुनिया से छुपाके इश्क़ मिठाई दिल की आड़ में रखने दो बहता लम्हा जम जायेगा वक़्त यहीं पे थम जायेगा ------- 2. ओढ़ लूं तुमको सरापा मैं आगोश का कम्बल ढकने दो अपने सांचे में थाम मुझे तुम-सा मुझको दिखने दो खुद को रख दूं गिरवी मैं जो अपने पास रखने दो बहता लम्हा जम जायेगा वक़्त यहीं पे थम जायेगा ------- 3.