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Showing posts from May, 2018
बदल जाना किसी का इतना बुरा नहीं है उसके समझ न आने , जितना बुरा नहीं है बकरे ने कसाई को समझ लिया ख़ुदा यही यकीन बुरा है , ठगना बुरा नहीं है जितना समझे रहे थे , उतना नहीं था अच्छा जितना समझ रहे हो , उतना बुरा नहीं है बस यही एक तजरबा , हमें कई मर्तबा हुआ कि मुझसे है बुरा वो , वरना बुरा नहीं है सजे तो लगे परी - सी , डरता हूँ कि वैसे ग़रीब की बेटी का , सजना बुरा नही है ऐसे जल रहा हूँ , गल रहा हूँ न पिघल रहा हूँ हर वक़्त जलन बुरी है , जलना बुरा नहीं है माना बुरे हैं हम फ़क़ीर , कुछ अपनी भी कहो बुरे नहीं हो तुम , कि ज़माना बुरा नहीं है ?
रूठी हुयी है ज़िन्दगी मनाना है फिर छोड़ के उसको , मुझे जाना है परिंदों की * सिम्त चलाई है गोली * Towards * सय्याद आयेगा , उन्हें उड़ाना है * Hunter एक वादा जो मैं कर न सका बस वही एक वादा अब निभाना है छोड़ आया दीवार पे , बेटी का लिखा ' पापा ' कमरे का किराया जो चुकाना है सोचो कितना मुश्किल काम है बिना उसके उसका घर बसाना है नाम लेकर अपना ज़ोर ज़ोर से उसे उससे अब बाहर बुलाना है हम गुमराह मील के पत्थरों को फ़क़ीर भटके हुओं को रास्ता बताना है
ज़माने के साथ नहीं अकेले आने का बस यही एक तरीक़ा है मुझे हराने का लहरें मुख़ालिफ़ हों , मुक़ाबिल बन बेशक़ पर आँख में आंसू हो तो डूब जाने का ज़िंदगी उसकी अपनी , इम्तिहां बन गयी बहुत शौक़ था उसको मुझे आज़माने का ज़हीन करे तर्क तो , तर्क कर उनसे पर ज़ाहिल से शुरू में ही , हार जाने का सीने पे जो रखा खंज़र , तो डर गया मैं सीना उसका , दिल मेरा , ख़ौफ़ दीवाने का ताउम्र सड़क पे सोया , मरने पे मिली चारपाई क्या ही सबब पूछूं , सुब्ह चराग़ जलाने का जो वो देखे दर्पण , दर्पण तस्वीर समझे ख़ुदको आईने को भी कभी , आईना दिखाने का कभी सुनी नहीं उसकी , मगर जो कहा उसने चले जाओ , मन बना लिया चले जाने का बस कि अब फ़क़ीर , ओढ़ लो क़ब्र अपनी ख़ाब ही रहा , ख़ाब के ख़ाब में आने का
अपने गुनाहों के लिए मुझे माफ़ करता रहा यूं वो क़ातिल लहू से लहू साफ करता रहा उसके ख़िलाफ़ मैने सुनी नहीं कभी अपनी भी कि ख़ुद के ही ख़िलाफ़ ख़ुद ये ग़ुनाह करता रहा उसका हुस्न, किसी कंजूस की दौलत चिल्लरों में खर्च क्या करता, ताउम्र बस कि हिसाब करता रहा हथेलियां जला लीं जिस चराग़ को बचाने में फ़क़ीर साज़िशन वही, हवा मेरे ख़िलाफ़ करता रहा

गाँव का मौसम

इन्द्रधनुष बालों में सजा के निकली है आज तो धूप भी नहा के निकली है झोपड़े के दरकते किनारों से बूँद-बूँद मोती झड़े कच्ची दीवारों का पिघला सोना सूख रहा है पड़े पड़े बूँद बूँद है फौजी जो लश्कर बनाते लहरों का गाँव का तो रंगीन है कैसा है सावन शहरों का ----------------------------------------------------------------- हवा के झूले पे फूलों ने कलियों को झुलाया है जाने किसने खेतों को पीला स्वेटर पहनाया है आसमान से बादल के जाले जाने किसने उतारा है झील को लगी आसमाँ की छूत नीला-नीला पानी सारा है दिन-दोपहर हुए आलसी जगते-जगते जगते हैं स्वेटर पहने रंगीन फूल तितलियों के पीछे भगते हैं पानी अपने दाँतों को रोज़ धार लगाता है पर सूरज जैसे बौराया हो रोज़ शाम को ही नहाता है बैठे बैठे सुन रहे हैं संध्या -भजन नहरों का गाँव का तो रंगीन है कैसा है जाडा शहरों का ---------------------------------------------------------------------- आमों के बागीचे में काली कोयल गाती है जाते-जाते कच्चे आमों में मीठी आवाज़ भर जाती है तपते सूरज के नाक के नीचे चाँद घाट पे नहाते है
खोदकर ज़मीन क़ब्र में मुझको दफ़ना रहा है  उसे ख़बर नहीं बीज को बरगद बना रहा है
कि मैं तेरे रहम ओ करम का *मुंतज़िर नहीं हूँ तेरी महफ़िल में मौजूद हूँ , हाज़िर नहीं हूँ मेरे लब पे न आएगा मेरे क़ातिल तेरा नाम ज़मीर अभी भी ज़िंदा है , अव्वल *मुखबिर नहीं हूँ मैं तुझे पाने के लिए , क्या ख़ुद को बेच दूं ? तेरे लिए तो हूँ , सिर्फ तिरी ही ख़ातिर नहीं हूँ तेरे दिल के बाद कितने दिलों ने दी दस्तक मुझे तू देख आज भी बेघर हूँ , * मुहाज़िर नहीं हूँ मेरा ग़ुस्सा मेरे ग़म की फक़त पर्दादारी है तिरी बेवफ़ाई में शामिल हूँ , ज़ाहिर नहीं हूँ अमृता वो बेदिल है , जो दिल का मरीज़ बना दे क्या फ़रक़ कि फ़क़ीर हूँ मैं , कोई साहिर नहीं हूँ
तू है बेग़ुनाह, बा-ग़ुनाह मैं हूँ  मेरे ख़िलाफ़ मेरा ग़वाह मैं हूँ  कहीं मंज़िल भी भटकती है राह  कि ग़ुमशुदा तू नहीं, ग़ुमराह मैं हूँ
समंदर को कितना गुरूर है अपनी रवानी पर कोई तस्वीर देर तक टिकती नहीं है पानी पर प्यादा बन सकता है बादशाह एक सब्र के बाद कहीं किरदार ही भारी न पड़ जाए कहानी पर लाली पाउडर होते हैं जैसे दाग धब्बों पे दौलत का भी बस वही है असर बेईमानी पर काटकर हाथ उसने सोचा ज़ुबान मेरी काट ली कागज़ बोलते हैं मेरी ही कलम की ज़ुबानी पर सोचता था उसके बग़ैर दुनिया अंधेरी रह जाएगी चाँद को देख पशेमां सूरज , जा गिरा पानी पर फ़क़ीर बिगड़ गया है , बारहा बोलती है ये दुनिया भलो की भला दुनिया , हुई है कब दीवानी पर
न ये सितारे कोई नग हैं, न वो चाँद कोई नगीना है  जुगनू की बग़ावत पर, रात के माथे पे पसीना है