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Showing posts from July, 2015

ग़ुमशुदा चाँद...

मेरा चाँद खो गया है मुझसे मिले, तो ज़रा मुझे बताना क़द? यही कोई दरम्याना सा मेरे हौसले से ज़रा-सा बुलंद रंग ऐसा कि सुबह भी सांवली लगे करे जो उसका सामना दिल में उतर जाए दूर तलक जैसे आईने के सामने रखा हो कोई आईना हँसे तो दो गालों पे झीलें उतर आएं उड़ते रंगों को भ्रम हो तितलियों सी इर्द-गिर्द मंडराएं दो गुलाबी पंखुड़ियों में बत्तीस हीरे जड़े ज़ुल्फ़ें जो झटक दे तो ग़रज़ के साथ छींटें पड़े आँखें चुम्बक सी खेंच ले जाती हैं इरादे चाहे जितने भी हों लोहा इशारे तिलिस्म लखनऊ के भूल-भुलइया से हर मोड़ पे है धोखा अंगड़ाइयां… इन्द्रधनुष का आठवां रंग आता है जिनको नींदें उड़ाना मेरा चाँद खो गया है मुझसे मिले तो ज़रा मुझे बताना