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जाल


बंसी (FISHING ROD) डाल के बैठेगे
फुर्सत के सरवर (सरोवर) में.
यादें पकड़ना
अब अपना शगल बनाएं.

या माज़ी में
स्याही बिछाएं
लम्हें फसाएं
ग़ज़ल बनाएं.

या फिर नंगे हाथ ही
वक़्त की दरिया में
उतर जाएँ

खूब खंगाले लहरों को
अश्क से तर सरवर से
यादें तुम्हारी
पकड़ लायें.

इससे पहले कि
वक़्त का ठहरा पानी
मेरे धड़कन की हलचल से
मटमैला हो जाए....

इससे पहले कि
चंचल यादें
इसमें छिपकर
खो जाएँ....

स्याही के
लफ्ज़नुमा जाल में
फंसा लूं तुमको....

मन के AQUARIUM में
ऐ जलपरी
बसा लूं तुमको.....

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तुम्हारा ज़िक्र लबों पर दबा लेता हूँ तुम्हारा रुख पलकों में छुपा लेता हूँ साँसों में सरगोशी भी है चुप चुप सी, धीमी धीमी धड़कने भी चलती हैं अब दबे क़दमों से, थमी थमी बचा रहा हूँ तुम्हें छिपा रहा हूँ तुम्हें दुनिया से, रुसवाई से कभी कभी अपनी ही परछाई से लेकिन ख़्वाब में तुझसे बातें करने की आदत अक्सर मुझे डराती है अब दिल में छुपाना मुमकिन नहीं मुझसे तेरी खुशबू आती है. मुझसे तेरी खुशबू आती है.

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