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फेसबुक : चेहरों की किताब

ख़ुद एक चेहरे पर चढाये हज़ार चेहरे.
अजनबी तहें खंगालने को बेकरार चेहरे.

नंगे होने से जो कतराते हैं,
हर वक़्त मुखौटों के तलबगार चेहरे.

तेरे मेरे उसके शुमार - बेशुमार चेहरे,
साथ हैं कुछ, कुछ दरकिनार चेहरे.

काले गोरे सस्ते मंहगे हासिल मुश्किल
चेहरों के है ‘खुले बाज़ार’ चेहरे.

और हो गया तन्हा इनसे मिलके,
तन्हाई की गिरफ़्त में हैं गिरफ़्तार चेहरे.

जाने - पहचाने अजनबी से हैं कुछ,
मकान -ए- दिल तोड़कर हुए बेज़ार चेहरे.

सवालों से कभी नंगी तलवार चेहरे,
और कभी जवाबों से मझधार चेहरे.

जाने फिर क्यूँ ये खुशफहमी है,
छिपे हैं इनमें ही पतवार चेहरे.

चलो इसके बहाने वो क़रीब तो आये,
बाबदन फासलों से दो लाचार चेहरे.

इन्हीं किताबी चेहरों की है इक किताब,
तिलस्मी चेहरे दर्ज हैं जिसमें बेहिसाब.

उम्मीद की जो इक लौ जलाता है,
लापता चेहरों का पता ढूंढ कर लाता है......

Comments

  1. और हो गया तन्हा इनसे मिलके,
    तन्हाई की गिरफ़्त में हैं गिरफ़्तार चेहरे.

    जाने - पहचाने अजनबी से हैं कुछ,
    मकान -ए- दिल तोड़कर हुए बेज़ार चेहरे.
    Gazab kee panktiyan hain!

    ReplyDelete
  2. Please,ye word verification hata den! Comment karne me suvidha hogee!

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  3. Maine nahin rakha hai... yeh default hai....
    BaharHaal....phir se ek baar aapka Tah -E- Dil se shukriya :)

    ReplyDelete

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