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ऐ धूल धमक पे आ जा तू


ऐ धूल..
ऐ धूल धमक पे आ जा तू
अम्बर को भर ले मुट्ठी में
सूरज की अकड़ को खा जा तू
थूके तो बनके छींटें
बनके छींटें गिरे जुगनू जुगनू

ऐ धूल
ऐ धूल धमक पे आ जा तू

जिनके क़दमों ने तुझे रौंदा है
धूल बन उनकी तू आँखों का 
गर्द समझते हैं जो तुझको
बन बवंडर उनकी राहों का 

फूंक तू ऐसी चिंगारी 
फूंक दे महल जले धूं धूं
ऐ धूल
ऐ धूल धमक पे आ जा तू

दो से चार, चार से हज़ार हो
एक-एक वार पैना, वार में धार हो
पत्थर के हिटलर को तराशे जा
मुजस्सम-ए-अवाम नक़्क़ाशे जा 
बदल दे मौसम
बढ़ा हरारत-ए-लहू
ऐ धूल
ऐ धूल धमक पे आ जा तू
ऐ धूल
ऐ धूल धमक पे आ जा तू




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मुझसे तेरी खुशबू आती है......

तुम्हारा ज़िक्र लबों पर दबा लेता हूँ तुम्हारा रुख पलकों में छुपा लेता हूँ साँसों में सरगोशी भी है चुप चुप सी, धीमी धीमी धड़कने भी चलती हैं अब दबे क़दमों से, थमी थमी बचा रहा हूँ तुम्हें छिपा रहा हूँ तुम्हें दुनिया से, रुसवाई से कभी कभी अपनी ही परछाई से लेकिन ख़्वाब में तुझसे बातें करने की आदत अक्सर मुझे डराती है अब दिल में छुपाना मुमकिन नहीं मुझसे तेरी खुशबू आती है. मुझसे तेरी खुशबू आती है.

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