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भ्रष्टाचार

अब अपने शहर में भी मॉल खुलेगा.
दुनिया भर का जिसमें माल मिलेगा.
डॉलर ने खरीद ली गरीब की क़िस्मत.
... कौड़ी लगायी गयी है झोपड़ी की क़ीमत.
मॉल में ही अब मिलेगी भाजी तरकारी.
PACKAGED होगी अब दुनिया हमारी.
मंगू की ठेले पर लाश मिली है.
मुठ्ठी में ज़ब्त, बची हुई पोटाश मिली है.
सब्ज़ी मंडी बंद हो गयी होने दो.
भूखे नंगे रो रहे हैं रोने दो.
मंगू में अपना हश्र देख रहे हैं कई मंगू....
लाशें लाश ढो रहीं हैं ढोने दो.

हिन्दुस्तान की ये तरक्की... ज़िन्दाबाद
बंद हो गयी आटा चक्की.... ज़िन्दाबाद
ग़रीब मर गया, कम हुई ग़रीबी... ज़िन्दाबाद
बदनसीबी में छुपी ख़ुशनसीबी... ज़िन्दाबाद
बस्ती चीखती है दिन रात... ज़िन्दाबाद
सरकारी हाथ है आपके साथ.... ज़िन्दाबाद

हवा पे टैक्स, पानी पे टैक्स, ज़मीं पे टैक्स
ख़ाब पे टैक्स, उम्मीद पे टैक्स, यक़ीं पे टैक्स
आपका पैसा खा गया खादी वाला उसका टैक्स
बोफोर्स, ताबूत, .2G, CWG घोटाला उसका टैक्स
मूर्तियों से पाट दिया गाँव शहर उसका टैक्स
गाँधी का, गाँधी (रुपया) पे है बुरी नज़र... उसका टैक्स
शक़ल गयी है दादी और बाप पर... उसका टैक्स
पगड़ी अगली बंधेगी उसके सर.... उसका टैक्स

गाँधी धोती गाँधी लंगोट... ज़िन्दाबाद
गाँधी के नाम पर देना वोट... ज़िन्दाबाद
गांधीवाद का गलाघोंट .... ज़िन्दाबाद
स्विस बैंक में छुपा है नोट... ज़िन्दाबाद
मार रहे हैं पेट पे लात... ज़िन्दाबाद
सरकारी हाथ है आपके साथ... ज़िन्दाबाद

गरीब गाँव मरने को तैयार है
उसपे जो इतना क़र्ज़ का भार है
दाल क्यों न पहुंचे सौ रुपये
अन्नदाता भूखा है बीमार है
सामूहिक ख़ुदकुशी कर गए सारे
बच गए क़र्ज़ से, मर गए सारे
चीखे दब गयीं वर्ल्ड कप में
अखबार छक्कों से भर गए सारे

कृषि मंत्री ने वर्ल्ड कप दिलाया... ज़िन्दाबाद
28 साल बाद जो घर को आया ... ज़िन्दाबाद
शोर ने चीख का गला दबाया.... ज़िन्दाबाद
लाशों पे सबने जश्न मनाया .... ज़िन्दाबाद
साला कौन सुने गूंगों की बात... ज़िन्दाबाद
सरकारी हाथ है आपके साथ.... ज़िन्दाबाद

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मुझसे तेरी खुशबू आती है......

तुम्हारा ज़िक्र लबों पर दबा लेता हूँ तुम्हारा रुख पलकों में छुपा लेता हूँ साँसों में सरगोशी भी है चुप चुप सी, धीमी धीमी धड़कने भी चलती हैं अब दबे क़दमों से, थमी थमी बचा रहा हूँ तुम्हें छिपा रहा हूँ तुम्हें दुनिया से, रुसवाई से कभी कभी अपनी ही परछाई से लेकिन ख़्वाब में तुझसे बातें करने की आदत अक्सर मुझे डराती है अब दिल में छुपाना मुमकिन नहीं मुझसे तेरी खुशबू आती है. मुझसे तेरी खुशबू आती है.

सूत पुत्र कर्ण

1. हे गिरधारी ! हे निस्वार्थ! भले ही परमार्थ तुम्हारी मंशा में निहित है ... विराट ईश्वरीय स्वार्थ क्या अधर्म नहीं है ये, तथाकथित धर्म का... क्या है कोई विकल्प ... इस सूत पुत्र कर्ण का.... 2. दुर्भाग्य ने हो डंसा जिसे जननी ने हो तजा जिसे आगत पीढियां पूछेंगी क्यूँ भगवान् ने भी छला उसे क्या प्रत्युत्तर होगा तुम्हारा प्रश्न के इस मर्म का क्या है कोई विकल्प इस सूत पुत्र कर्ण का..... 3. स्वयंवर का दिन स्मरण करो अन्याय वो मनन करो मेरी चढ़ी प्रत्यंचा रोक ली कहकर मुझे सारथी क्या करूं बताओ मुझे अपमान के इस दहन का... क्या है कोई विकल्प इस सूत पुत्र कर्ण का.... 4. जब सबने मुझे ठुकराया था गांधेरेय ने मुझे अपनाया था सहलाकर घाव मेरे मुझे गले से लगाया था क्या मोल न चुकाऊं मैं मित्रता के चलन का.... क्या है कोई विकल्प इस सूत पुत्र कर्ण का.... 5. पांडव जीते दुर्भाग्य हारकर जुए में कौरव नेत्रहीन हुए स्वार्थ के धुंए में कोई कारण बताओ मुझे अकारण मेरे पतन का क्या है कोई विकल्प इस सूत पुत्र कर्ण का.... 6. इस नश्वर जीवन का तनिक मुझे लोभ नहीं
दो लबों पर वो एहसास बाकी है कैसे चूमा था मुझे पहली बार.. गहरी आँखों में दर्ज है वो मंज़र कैसे देखा था मुझे पहली बार.. ... मेरी जिस्म की तपिश अब भी आगोश में है कैसे लगाया था गले मुझे पहली बार उँगलियों का दबाव अब भी महसूस करती है कैसे थमा था मैंने उसका हाथ पहली बार अब भी शहद घुल जाते हैं उसके कानों में कैसे पुकारा था मैंने उसे पहली बार अब भी रुलाती है उसको ये याद कैसे हंसाया था मैंने उसे पहली बार आईना हूँ मैं उसके जिस्म ओ रूह का ख़ुद को देखा... देख के मुझे पहली बार कोई जो मुझसे पूछे, वो मेरी क्या है बस एक मुखत्सर सा जवाब 'मेरी दुनिया है' या कहूँगा मेरा वजूद, मेरी जन्नत, मेरी जाँ है नहीं सनम नहीं, वो मेरी माँ है.