तुझे देखकर यक़ीन होता है,
ख़ुदा को भी कभी फ़ुरसत थी.
शायद वो भी कभी इंसान था,
मुझ जैसी ही उसकी हसरत थी.
कभी वो भी था मरीज-ए- इश्क़
नासाज उसकी भी तबियत थी.
बच गया वो ख़ुदा हो गया,
उसकी ख़ुद पर रहमत थी.
हम भटक रहे हैं रूह बनकर
ज़रुरत है वो जो कभी चाहत थी.
मकबरा -ए- फकीर गवाह है,
हमें भी कभी मुहब्बत थी.
ख़ुदा को भी कभी फ़ुरसत थी.
शायद वो भी कभी इंसान था,
मुझ जैसी ही उसकी हसरत थी.
कभी वो भी था मरीज-ए- इश्क़
नासाज उसकी भी तबियत थी.
बच गया वो ख़ुदा हो गया,
उसकी ख़ुद पर रहमत थी.
हम भटक रहे हैं रूह बनकर
ज़रुरत है वो जो कभी चाहत थी.
मकबरा -ए- फकीर गवाह है,
हमें भी कभी मुहब्बत थी.
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