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बदन में जब नहीं ख़ू फिर भला ख़ू कैसे खांसा मैं
कि मुफलिस बन, बना हूं देख जैसे इक तमाशा मैं

रहे सावन बने सावन, कि सर पटके जहां साहिल
मरा हूं उसी समंदर के किनारे हाय प्यासा मैं

तलाशा तन तलाशा मन, जवानी और वो बचपन
मिला लेकिन कहीं मैं ना, कि कितना भी तलाशा मैं

मुझे शीरी वही तू थी, तुझे मीठा वही मैं था
तू भेली एक गुड की और तेरा था बताशा मैं

हंसे दुनिया कहे दुनिया अरे तू चीज है ही क्या
कि तू पहचान मेरी थी कि था तेरा शनासा मैं

दुखी तू भी थी मैं भी था घिरा सा इक हताशा में
बनी हिम्मत मेरी तू और तेरा था दिलासा मैं

जो था प्यासा, नदी खोजी, नदी खोदी, कई मैने
मिले दरिया सदा मुझको सदा से हूं सो प्यासा मैं


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मेरी सूरत से वो इस क़दर डरता है. कि न आइना देखता है, न संवरता है. गवाह हैं उसके पलकों पे मेरे आंसू, वो अब भी याद मुझे करता है. दूर जाकर भी भाग नहीं सकता मुझसे, अक्सर अपने दिल में मुझे ढूँढा करता है. ख़ामोश कब रहा है वो मुझसे, तन्हाई में मुझसे ही बातें करता है. मेरी मौजूदगी का एहसास उसे पल पल है, बाहों में ख़ुद को यूँही नहीं भरता है. मेरे लम्स में लिपटे अपने हाथों में, चाँद सी सूरत को थामा करता है. जी लेगा वो मेरे बिन फ़कीर, सोचकर, कितनी बार वो मरता है.
सुनो! मैं बादलों के बादलों से लब लड़ाऊंगा यही ज़िद है कि अब आब से मैं आग पाऊंगा मुझे तुम छोड़ के जो जा रहे हो तो चलो जाओ करूंगा याद ना तुमको, मगर मैं याद आऊंगा थमाया हाथ उसके एकदिन शफ्फाक आईना मिरा वादा था उससे चांद हाथों पर-सजाऊंगा ज़रा देखूं कि अब भी याद आता हूं उसे मैं क्या कि अपनी मौत की अफवाह यारों मैं उड़ाऊंगा लड़ाऊं आंख से मैं आंख, वादा था मिरा उसको अजी पानी नहीं जानां, मैं मय में मय मिलाऊंगा बदन शीशे का तेरा और संगदिल भी तुही जानां तुझे तुझसे बचाऊं तो भला कैसे बचाऊंगा