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किसी दिन गाँव को भी है नगर होना
दवा की बदनसीबी है जहर होना

चले दिनभर कहीं भी पर नहीं पहुंचे
नहीं आसाँ घड़ी का हमसफ़र होना

ग़ज़ब ये भी नहीं सर कट गया मेरा
ग़ज़ब है जुर्म भी मेरे ही सर होना

सभी तारीफ़ के पुल बाँधते थे, पर
उसे भाया था मेरा मुख़्तसर होना

सताये याद अक्सर घर की दफ़्तर में
डराये है मुझे दिनरात घर होना

पिता बिस्तर पड़ा है पर पिता तो है
बहुत है चूती छत भी मयस्सर होना

सुबह से इश्क़ उनको, प्यार शब् से है
मुझे यूं खल गया मिरा दोपहर होना









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मेरी सूरत से वो इस क़दर डरता है. कि न आइना देखता है, न संवरता है. गवाह हैं उसके पलकों पे मेरे आंसू, वो अब भी याद मुझे करता है. दूर जाकर भी भाग नहीं सकता मुझसे, अक्सर अपने दिल में मुझे ढूँढा करता है. ख़ामोश कब रहा है वो मुझसे, तन्हाई में मुझसे ही बातें करता है. मेरी मौजूदगी का एहसास उसे पल पल है, बाहों में ख़ुद को यूँही नहीं भरता है. मेरे लम्स में लिपटे अपने हाथों में, चाँद सी सूरत को थामा करता है. जी लेगा वो मेरे बिन फ़कीर, सोचकर, कितनी बार वो मरता है.
वक़्त के चेहरे पर झुर्रियां पड़ जाएंगी बस यही यादें हैं जो बाक़ी रह जाएंगी

मदारी

अरे! हे मदारी! रे मदारी! रे मदारी! हो! तेरा पिटारा, है जग सारा, दुनियादारी हो तेरे इशारे का सम्मान करें ख़ुद हनुमान तुम मांगो भीख तेरे कब्ज़े में भगवान ईश का करतब इंसान और ईश इंसानी कलाकारी हो   हे मदारी! रे मदारी! रे मदारी! हो! आस्तीन सा एक पिटारा सांप हम जै सा तुम्हारा सर पटके बार बार विष उगलने को तैयार न ज़हर उगल आज मत बन रे समाज काटने- कटने की ये बीमारी हो हे मदारी! रे मदारी! रे मदारी! हो! तेरे जमूरे- आधे अधूरे भूखे - नंगे , हर हर गंगे हाथसफाई के उस्ताद पर लगे कुछ न हाथ जीने के लिए जान लगाएं ज़ख्म से ज़्यादा कुछ न पाएं हवा खाएं साएं – साएं बचपन के सर चढ़ गयी ज़िम्मेदारी हो हे मदारी! रे मदारी! रे मदारी! हो!