तुम्हारी मौजूदगी की एक परत दबी है मेरे वजूद की तहों में. जब भी ख़ुद पर से ख़ुद का मलबा कुरेदने लगता हूँ..... चंद तहों के बाद तुम ख़ुद को मुझपर बिछा देती हो... सजा देती हो..... मुझको मुझसे ही मिटा देती हो.... चाह कर भी तुम्हारे वजूद से आज़ाद नहीं हो पाया... या यूं कहूं कि मैं ख़ुद से आज़ाद नहीं हो पाया ..... हर पल, हर कहीं साथ तुम हो... दीवार हूँ मैं ख़ुद के लिए बुनियाद तुम हो.....