तुम कहते हो कि वो तुम्हारा साया है क्या कभी उसे अँधेरे में भी आज़माया है बहार हों तो शाखों से लिपट जातें हैं गुल पतझड़ में भला किस पत्ते ने साथ निभाया है यार बहुत कड़वा है ज़िन्दगी का ज़ायका कहीं तुमने इसमें सच तो नहीं मिलाया है एक ख़्वाब घर का पूरा करने के वास्ते कई बार ख़ुदको बुनियाद तले दफनाया है हरेक बूँद के लिए मुझे तडपाने वाले ने सुपुर्द-ए-ख़ाक से पहले मुझको नहलाया है यहाँ से ये ग़ज़ल मेरे वालदैन (PARENTS) के नाम : उनके थप्पड़ का मलाल नहीं, ख़ुशी है मुझे नम आँखों से रातभर माँ ने सहलाया है चौंककर जागना फिर उसकी बांहों में दुबक जाना मेरे बुरे ख्वाबों ने कई रात उन्हें जगाया है तेरे हासिल में अगर वो शामिल नहीं है तो तू जन्नत भी पा ले तो क्या पाया है ख़ुदा को नहीं देखा लेकिन यकीं है 'फ़क़ीर' ख़ुदा ने उन्हें ख़ुद सा बनाया है