मेरी सूरत से वो इस क़दर डरता है.
कि न आइना देखता है, न संवरता है.
गवाह हैं उसके पलकों पे मेरे आंसू,
वो अब भी याद मुझे करता है.
दूर जाकर भी भाग नहीं सकता मुझसे,
अक्सर अपने दिल में मुझे ढूँढा करता है.
ख़ामोश कब रहा है वो मुझसे,
तन्हाई में मुझसे ही बातें करता है.
मेरी मौजूदगी का एहसास उसे पल पल है,
बाहों में ख़ुद को यूँही नहीं भरता है.
मेरे लम्स में लिपटे अपने हाथों में,
चाँद सी सूरत को थामा करता है.
जी लेगा वो मेरे बिन फ़कीर,
सोचकर, कितनी बार वो मरता है.
कि न आइना देखता है, न संवरता है.
गवाह हैं उसके पलकों पे मेरे आंसू,
वो अब भी याद मुझे करता है.
दूर जाकर भी भाग नहीं सकता मुझसे,
अक्सर अपने दिल में मुझे ढूँढा करता है.
ख़ामोश कब रहा है वो मुझसे,
तन्हाई में मुझसे ही बातें करता है.
मेरी मौजूदगी का एहसास उसे पल पल है,
बाहों में ख़ुद को यूँही नहीं भरता है.
मेरे लम्स में लिपटे अपने हाथों में,
चाँद सी सूरत को थामा करता है.
जी लेगा वो मेरे बिन फ़कीर,
सोचकर, कितनी बार वो मरता है.
बेहतरीन पंक्तियाँ । स्वागत है
ReplyDeleteगुलमोहर का फूल
achchi gazal hai...
ReplyDeleteजी लेगा वो मेरे बिन फ़कीर,
ReplyDeleteसोचकर, कितनी बार वो मरता है.
Bahut khoob!
दूर जाकर भी भाग नहीं सकता मुझसे,
ReplyDeleteअक्सर अपने दिल में मुझे ढूँढा करता है.
ख़ामोश कब रहा है वो मुझसे,
तन्हाई में मुझसे ही बातें करता है.
Behad sundar panktiyan!
bahut gahrai hai aapki kavita me
ReplyDeletepadh kar accha laga.
इस नए चिट्ठे के साथ हिंदी ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!
ReplyDeleteachhi lagi..
ReplyDeleteaap sabhi ka shukriya doston..........
ReplyDeleteहिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
ReplyDeleteकृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें
यह सोचकर वो कितनी बार मरता है----वाह, क्या खूब।
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