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मिरा दिल तोड़ कर परिशान कितना है
नए दिल में वफ़ा ईमान कितना है

मुझे छोड़ा मुनाफा इश्क़ का पाया
नफे में देख अब नुकसान कितना है

वही जो बात पसंद थी, उसी से खफा
वही हूं मैं तू तुझमें जान कितना है

हवा में हो, कि उड़ते हो, दिखा दूंगा
कटे पर में जुनूँ और जान  कितना है

बना है आदमी पर आदमी बनकर
तू दिल से पूछ अब इंसान कितना है

गिरे जो आदमी जितना, उसी का अब
मका उट्ठा वो आलीशान कितना है

भरे हैं लोग हर कमरे में दिल के पर
मका सूना सहन वीरान कितना है

कहो सच फिर नहीं कुछ याद रखने का
कि रट रट झूठ तू परिशान कितना है

कहा कबतक बकोगे यूं; कहा मैने
अजी बोतल में मेरी जान कितना है

वही जो तोड़ता रहता है दिल मेरा
लगा लूं दिल से उसे-अरमान कितना है

है वो रोशन कि मेरी रोशनी है वो
छुड़ाकर हाथ देखे सम्मान कितना है

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मेरी सूरत से वो इस क़दर डरता है. कि न आइना देखता है, न संवरता है. गवाह हैं उसके पलकों पे मेरे आंसू, वो अब भी याद मुझे करता है. दूर जाकर भी भाग नहीं सकता मुझसे, अक्सर अपने दिल में मुझे ढूँढा करता है. ख़ामोश कब रहा है वो मुझसे, तन्हाई में मुझसे ही बातें करता है. मेरी मौजूदगी का एहसास उसे पल पल है, बाहों में ख़ुद को यूँही नहीं भरता है. मेरे लम्स में लिपटे अपने हाथों में, चाँद सी सूरत को थामा करता है. जी लेगा वो मेरे बिन फ़कीर, सोचकर, कितनी बार वो मरता है.

मुझसे तेरी खुशबू आती है......

तुम्हारा ज़िक्र लबों पर दबा लेता हूँ तुम्हारा रुख पलकों में छुपा लेता हूँ साँसों में सरगोशी भी है चुप चुप सी, धीमी धीमी धड़कने भी चलती हैं अब दबे क़दमों से, थमी थमी बचा रहा हूँ तुम्हें छिपा रहा हूँ तुम्हें दुनिया से, रुसवाई से कभी कभी अपनी ही परछाई से लेकिन ख़्वाब में तुझसे बातें करने की आदत अक्सर मुझे डराती है अब दिल में छुपाना मुमकिन नहीं मुझसे तेरी खुशबू आती है. मुझसे तेरी खुशबू आती है.

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