तीर आख़िर लगा निशाने पर
था कबूतर सही ठिकाने पर
हारते हम नहीं तो क्या करते
गले लगता है वो हराने पर
इश्क है इक चराग को सबा से
खुदकुशी सर चढ़ी दिवाने पर
इश्क है काम बस दिवानों का
आप ठहरे मियां सयाने पर
फूल से मारना तो तब समझे
मर गए उसके जब लजाने पर
ढेर होने लगे कई मानी
बहर में शेर को बिठाने पर
सीख जो खुद समझ नहीं पाया
आ गया मुझको ही सिखाने पर
मौत भी मेहबूब ही ठहरी
कब है आई मिरे बुलाने पर
ख़ुद को गिरवी ही रख दिया हमने
एक बाज़ार के बुलाने पर
घर को सर पर उठाये रखता था
आज उट्ठा नहीं उठाने पर
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