ख़ू नहीं इक बूंद इतना साफ मारे
नाज मारे है कभी वो नाफ़ मारे
देखकर उसको नशा सा कुछ हुआ यूं
देखने वाले, लगे हैं हाफ मारे
मुकदमा उसकी नज़र पर, क्यों लगे जब
नज़र कब, ये तीर हमने, आप मारे
ठंड में थे सब गरम, था हुस्न ऐसा
ठंड में वो हुस्न, जिसका ताप मारे
चांद टूटा टूट के हर सिम्ट बह रहा
पैर नाज़ुक पानी पर वो थाप मारे
फैसले के बाद होता मुकदमा है
कत्ल से ज्यादा यहां इंसाफ मारे
चुस्त तन पर चुस्त कपड़ा कत्ल करे है
यार दर्जी हाय तेरी नाप मारे
दोष दूं तो भी किसे दूं, दोष है मिरा
आँख से थे जो बड़े वो ख़ाब मारे
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