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जला जंगल बहुत रोया कि साज़िश में
लगी लकड़ी उसी की ही, थी माचिस में

बदन के हिस्से आया ही नहीं साया
बदन साया बना था किसके ख़ाहिश में

कहा उसने अदा से यूं चले आओ
नवाज़िश थी कि ख़ाहिश थी गुज़ारिश में

दिखाया हुस्न उसने और इतना ही
रखा प्यासा दिया झांसा है बारिश में

हसीं वो थी जवाँ मैं था हुआ कुछ यूं
अजी मौसम उतर आया सिफारिश में

अकेले हम नहीं सजते दिखे जब वो
सितारे चाँद सब हैं अब नुमाइश में

गले हमको लगाकर वो कहा हमसे
रिहाई तो नहीं है इस रिहाइश में

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मेरी सूरत से वो इस क़दर डरता है. कि न आइना देखता है, न संवरता है. गवाह हैं उसके पलकों पे मेरे आंसू, वो अब भी याद मुझे करता है. दूर जाकर भी भाग नहीं सकता मुझसे, अक्सर अपने दिल में मुझे ढूँढा करता है. ख़ामोश कब रहा है वो मुझसे, तन्हाई में मुझसे ही बातें करता है. मेरी मौजूदगी का एहसास उसे पल पल है, बाहों में ख़ुद को यूँही नहीं भरता है. मेरे लम्स में लिपटे अपने हाथों में, चाँद सी सूरत को थामा करता है. जी लेगा वो मेरे बिन फ़कीर, सोचकर, कितनी बार वो मरता है.

मुझसे तेरी खुशबू आती है......

तुम्हारा ज़िक्र लबों पर दबा लेता हूँ तुम्हारा रुख पलकों में छुपा लेता हूँ साँसों में सरगोशी भी है चुप चुप सी, धीमी धीमी धड़कने भी चलती हैं अब दबे क़दमों से, थमी थमी बचा रहा हूँ तुम्हें छिपा रहा हूँ तुम्हें दुनिया से, रुसवाई से कभी कभी अपनी ही परछाई से लेकिन ख़्वाब में तुझसे बातें करने की आदत अक्सर मुझे डराती है अब दिल में छुपाना मुमकिन नहीं मुझसे तेरी खुशबू आती है. मुझसे तेरी खुशबू आती है.

सूत पुत्र कर्ण

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