जला जंगल बहुत रोया कि साज़िश में
लगी लकड़ी उसी की ही, थी माचिस में
बदन के हिस्से आया ही नहीं साया
बदन साया बना था किसके ख़ाहिश में
कहा उसने अदा से यूं चले आओ
नवाज़िश थी कि ख़ाहिश थी गुज़ारिश में
दिखाया हुस्न उसने और इतना ही
रखा प्यासा दिया झांसा है बारिश में
हसीं वो थी जवाँ मैं था हुआ कुछ यूं
अजी मौसम उतर आया सिफारिश में
अकेले हम नहीं सजते दिखे जब वो
सितारे चाँद सब हैं अब नुमाइश में
गले हमको लगाकर वो कहा हमसे
रिहाई तो नहीं है इस रिहाइश में
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