दर्द था जो आँख से वो बहा नहीं
इस नदी में पानी अब तो बचा नहीं
पैर ज़ख़्मी पर सलामत थे मगर
हाय क्यूं इसबार पंछी उड़ा नहीं
खेल है ये ज़िन्दगी और खेल वो
खेलते हैं खेलने में मज़ा नहीं
रात को सोता नहीं था शख्स जो
सो गया तो फिर कभी वो जगा नहीं
कुछ हो न हो, है खुदा, हूँ जानता
पर ख़ुदा पर भी यक़ी अब रहा नहीं
अब हवस है, या वफ़ा है तुम कहो
आँख भर देखा मगर कभी छुआ नहीं
इस नदी में पानी अब तो बचा नहीं
पैर ज़ख़्मी पर सलामत थे मगर
हाय क्यूं इसबार पंछी उड़ा नहीं
खेल है ये ज़िन्दगी और खेल वो
खेलते हैं खेलने में मज़ा नहीं
रात को सोता नहीं था शख्स जो
सो गया तो फिर कभी वो जगा नहीं
कुछ हो न हो, है खुदा, हूँ जानता
पर ख़ुदा पर भी यक़ी अब रहा नहीं
अब हवस है, या वफ़ा है तुम कहो
आँख भर देखा मगर कभी छुआ नहीं
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