वो बूढा घर के बाहर जिसे सुलाया गया
उसी बूढ़े के पेंशन से किराया गया
कि दहशतगर्द क्यों मुस्लिम ही होते हैं
डरे मन को डरे जन से डराया गया
उसे बरअक़्स, मेरे ही, किया सबने
मुझी को मुझसे फिर यूं आज़माया गया
बड़ा है मतलबी जग, माँ जिसे बोला
कि दसवें दिन उसी माँ को बहाया गया
नहीं धुलता था पानी से किसी सूरत
लहू से उस लहू को फिर मिटाया गया
छुआ कुम्हार ने, था जात का छोटा
उसी के बने घड़े से फिर नहाया गया
उसी बूढ़े के पेंशन से किराया गया
कि दहशतगर्द क्यों मुस्लिम ही होते हैं
डरे मन को डरे जन से डराया गया
उसे बरअक़्स, मेरे ही, किया सबने
मुझी को मुझसे फिर यूं आज़माया गया
बड़ा है मतलबी जग, माँ जिसे बोला
कि दसवें दिन उसी माँ को बहाया गया
नहीं धुलता था पानी से किसी सूरत
लहू से उस लहू को फिर मिटाया गया
छुआ कुम्हार ने, था जात का छोटा
उसी के बने घड़े से फिर नहाया गया
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