सागर से उसको इश्क़ साहिल से नहीं
मछली डरे हासिल से मुश्किल से नहीं
उसके नगर का तौर है हमसे जुदा
घर घर जुड़े हैं हाय दिल-दिल से नहीं
सूरज निकलते ही बुझा डाला दिया
है बस चमक से इश्क़ काबिल से नहीं
वो इश्क़ तो करता है पर शादी नहीं
मैं शौक़ से डरता हूँ क़ातिल से नहीं
हो बेबसी तो माफ़ है हर इक ख़ता
झूठों से डरता हूँ मैं बातिल से नहीं
मछली डरे हासिल से मुश्किल से नहीं
उसके नगर का तौर है हमसे जुदा
घर घर जुड़े हैं हाय दिल-दिल से नहीं
सूरज निकलते ही बुझा डाला दिया
है बस चमक से इश्क़ काबिल से नहीं
वो इश्क़ तो करता है पर शादी नहीं
मैं शौक़ से डरता हूँ क़ातिल से नहीं
हो बेबसी तो माफ़ है हर इक ख़ता
झूठों से डरता हूँ मैं बातिल से नहीं
Comments
Post a Comment