दूर तक अपना ना पराया था
ख़ुद मुक़ाबिल मेरा ही साया था
चाय फीकी लगी मुझे फिर तो
नाम उसका ज़बाँ पे आया था
काम आयी न बाप की दौलत
बाप ने ना/म ही कमाया था
ईंट के बदले फल दिया मुझको
पेड़ पापा का ही लगाया था
अश्क़ भारी पड़े मिरे सच पर
झूठ फिर सच पे मुस्कुराया था
कह रहा है, गले पड़े हो क्यूँ
जब गिरा था, गले लगाया था
ख़ुद मुक़ाबिल मेरा ही साया था
चाय फीकी लगी मुझे फिर तो
नाम उसका ज़बाँ पे आया था
काम आयी न बाप की दौलत
बाप ने ना/म ही कमाया था
ईंट के बदले फल दिया मुझको
पेड़ पापा का ही लगाया था
अश्क़ भारी पड़े मिरे सच पर
झूठ फिर सच पे मुस्कुराया था
कह रहा है, गले पड़े हो क्यूँ
जब गिरा था, गले लगाया था
Comments
Post a Comment