लताजी के लिए तुम गुमशुदा नहीं हो पाओगी कहीं लापता नहीं हो पाओगी... मेरे सरीखे कितने दिल ओ- ज़ेहन पर दस्तक है तुम्हारी तुम कोई आदत हो, लत हो लता हो लाईलाज बीमारी तुम्हारे हर लफ्ज़ मारतें हैं हमें किस्तों में तुम्हारी गुनगुनाहट से है नाता और क्या रखा है रिश्तों में जाने कैसे मेरी हर ख़ुशी हर ग़म का तुम्हें पता है ज़िन्दगी में इतनी दखलंदाजी किसको खटकती है, कब खता है तुमने अपनी आवाज़ को दी है सूरत कोई सुनता हूँ तो लगता है वीणा लिए गा रही है मूरत कोई तुम तन्हा होकर भी तन्हा नहीं हो सब हैं तुम्हारे तुम भी हर कहीं हो ऐ आवाज़ को पहचान बनाने वाली ऐ बुलंदियों को पायदान बनाने वाली ख़ुदा हैरत में है ख़ुद के करिश्में पर ऐ बूत! बूतकार को हैरान बनाने वाली.....